SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 474
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरु मंबर पुराण कर्पगमा नल्लार्गळ कामन शेखिदे पोर। कर्पग मरत कामखिगळ् शेरिंग काम ।। विपई ळोबियं कंड वेदिगे अँड. मीळवार । तप्पुवट नडयिदाळ लोळयिना ळयर मेन्ना ॥१०६६॥ प्रर्थ-जिस प्रकार पतिव्रता स्त्रियां अपने पति से बार २ प्रालिंगन करती हैं , उसी प्रकार लताएं व कल्पवृक्ष परस्पर में लिपटे हुए थे। उस वनभूमि में रहने वाले मणियों के समूह के प्रकाश को देखकर वे मेरु और मंदर इसी प्रकाश को भगवान का मंदिर समझ कर जाते हैं, परन्तु भ्रम समझकर वापस लौटकर आ जाते हैं। ऐसी वह मरिण चमकती थी। उस भूमि के प्रभाव से चलने में श्रम प्रश्रम का कुछ भी पता नहीं चलता था। इसी से वह भूमि भ्रमायमान प्रतीत होती थी॥१०६९।। मधुकरं तुंबिवं वन शिर परब म । पोदिय विळ पोदिन मोदू पोर्तन पुगळ ला ॥ मदि योळि परंव भूमि विदि युळि किडंदवल्लि । पोलिय पोदिन मैदु पोर्ल कन् वांग ळा ॥१०७०॥ वनमिदु विषिई नदि वाविये शार्दु मैंद । रिण मळरवि सोन वेट्टदु मरत्ति नान्गु । शिनदोरं शेरिव शीय वन मिश देवकोमा । ननय पुरपरिमै तूबै यरुचित्तु पिरिवि सेरंवार ।।१०७०॥ अर्थ-जिस प्रकार चंद्रमा की किरणें चारों प्रोर फैल जाती हैं, उसी प्रकार वहां की विशाल वनभूमि में रहने वाले पुष्पों में निवास करने वाले भ्रमर प्रादि की ध्वनि चारों पोर गूंजती है । उसका वर्णन करना मेरी अल्प बुद्धि में अशक्य है । उस भूमि को देखने के पश्चात् पौर कोई दूसरी वस्तु देखने की इच्छा ही नहीं होती ॥१०७०॥ • इरुनिदि इरंच सेन्नि इमै यम् विश्वन पॉद । मरुविय देन सेवोन मयवास घेळ्ळि शूहि॥ युर मळि युदयत्तिकै मिरमडि यागु पिरिदि। सरमेनु निजि यदु निळय्य नट्टाळेतागुं॥१०७१॥ मर्थ-ऐसी वनभूमि में वे दोनों राजकुमार पहुंचे और वहां अत्यन्त सुगंधित पुष्पों को अपने हाथ से तोडे । वहां पाठ कल्प वृक्ष हैं। और पाठ ही चैत्य वृक्ष हैं। एक २ चैत्य वृक्ष में चार २ शाखाएं हैं । एक २ शाखा में एक २ जिन बिम्ब हैं। उस चैत्य वृक्ष के पास पहुँचकर मेरु और मंदर दोनों राजकुमारों ने भगवान की पूजा की। वहां से प्रागे चलकर बनभूमि में रहने वाले प्रीतंकर नाम की वेदी पर पहुंच गये। वहां शंखनिधि और पानिधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy