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________________ ॥ तेरहवां अधिकार ॥ • समवसरण का वर्णन : योजनै पन्नि रंडि नुबंर कोन् ;वर काना। पेशोन् वगई निड पेरुमिद मलिंद दिया । मोशन इरंजि नार्ग कैदिना रिरवन् कोइल। बोसु वेन् चामरोदि परिचंद मुळंदु विट्टार ।।१०४८।। अर्थ-बारह योजन लम्बे समवसरण भूमि में भगवान के पास जाने के लिये चार वीथियां (मार्ग) हैं । एक २ वीथो में एक २ मानस्तंभ है । इस प्रकार चार मान स्तम्भों को दूर से देखते ही मानियों के मान गल जाते हैं। इस प्रकार मानस्तंभ को देखते ही मेरु मौर मंदर दोनों राजकुमार अपने २ वाहनों से उतरकर समवसरण के समीप मा गये ||१०४८।। यानई निळिंदु मानांगरणत्तिरु काद बीदि । मान पीडत्तै माधि नळ बुळ मदिले यदि ।। कानुर कमल पोदिर् केतोळु दिरंजि वाति । यूनंतिर् तूयत्तानाम् कनं पुक्कार कोश पोये ।।१०४६।। अर्थ-क्रम से उन दोनों राजकुमारों ने धूलि नाम की शाला को छोडकर वहाँ रहने वाली प्रासाद नाम की चैत्यभूमि में प्रवेश किया प्रौर उत्तर वीथी में रहने वाली मनुष्य के हृदय प्रमाण वलि पीठ के पास पहुँचकर उस बलिपीठ पर पुष्प चढाकर नमस्कार किया और मागे चलकर प्रासाद नाम की चैत्य भूमि के मध्य भाग में प्रवेश किया ॥१०४६।। प्रांगद नगत्तु वोदि नडुव नार्काद मोंगि । पांगिन मा दिर्श इर पन्निरोचन कारण नि:। वांगु कांतम् पोल मानं वांगु नन्मानत्तबम् । पांगिनार ट्रोरनं वेदि मंगलं पलवू सूळंद ॥१०५०।। प्रर्थ-उस समवशरण की चारों दिशाओं की चार वीथियों में चार मानम्तंभ बारह योजन दूर से मनुष्य को दीखते हैं। और वह मानस्तंभ जैसे लोह चुम्बक दूर पड़ी हुई नई को खींच लेता है उसी प्रकार उसको देखते ही मनुष्य की भावना उसी मोर लग जाती है और भावना खिंचते ही मन गलित हो जाता है। उ के चारों मोर वेदियो तथा तोरण है । पौर चारों तरफ प्रष्ट मंगल द्रव्य हैं ॥१०५०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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