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________________ ४१२ ] मेरु मंदर पुराण वईर नपडिगं वैडूर्य मडि नडुव नुच्चि । युयरत्तिन भाग मोक्कं पडिग मेर् कोळ वोकम् ॥ वेइल विड़ तामर कोळ मेलाइरम नडुवि रट्टि। तुयरिन केडुक्कुं सित्त पडिमै नाट्रि शयु मामे ॥१०५१॥ अर्थ-उस मानस्तंभ का उत्सेध चार कोस का है । वह वैडूर्य मणियों से निर्मित है। उस मानस्तंभ को दो कोस तक के विस्तार में बीच में स्फटिक मरिण तथा रत्नों से निर्मित किया है। उस मानस्तंभ के ऊपर मेघाडम्बर (गुमटो) नीचे से एक कोस चौडा, बीच में दो कोस और कार एक कोस निर्मित किया गया है । उन स्तंभों पर नीचे चारों ओर सिद्ध परमेष्ठो के जिनबिंब विराजमान हैं । बारह योजन दूर से उनके दर्शन होते हैं ।।१०५१।। नानुग भूत दुच्चि पालिग कमलप्पोदिन् । मेल वैत शंबोर् कुबत्तुच्चि मेर् पलगे तन्निर् ॥ पानिर पगडु पालं पदुमै मेर पुळिय देवि । मेन मुडि पदुम राग मिरुबदोचन विळक्कुं॥१०५२।। अर्थ-उम मानस्तंभ के ऊपर चतुर्मुखी यक्ष यक्षिणी की मूर्ति का निर्माण कर कलश रखा गया है। कलश पर फलक रखा गया है । फलक पर लक्ष्मी देवी की मूर्ति विराजमान की गई है । उस लक्ष्मी देवी के सिर पर दोनों प्राजू बाजू श्वेत हाथियों द्वारा अभिषेक करने का दृश्य दिखलाया है । इस लक्ष्मी देवी के किरोट लगे हुए का प्रकाश बीस योजन दूरी तक फैला हुअा है ।।१०५२॥ मणिमय माय शुक्कं नांड मंगलगंळेदि । येनिपेर नि नान्गा मंद-मानत्तंबत्तै । इनैला वलंकोंडेति इजि पोय कोस नील । मरिण निल तगळि मावि नळ बुळ मदिल कंडार् ॥१०५३॥ अर्थ-उस रत्नमयी लक्ष्मी देवी के नीचे जो फलक है उसके कौने में पाठ मंगल द्रव्य हैं , जो उसके नीचे चारों ओर लटकते हुए हैं। इस प्रकार चारों ओर के मानस्तंभों की प्रदक्षिणा देकर दोनों राजकुमार आगे बढे और उसके बाहर रहने वाली एक कोस चैत्य भूमि को तथा वहां को वेदियों को उलांघ कर दूसरी खातिका भूमि में प्रवेश किया ॥१०५३।। पाळमु निरंतु मुंडे यागिलु मल येबानि । लूळि पेरंदालुं पेरा विदन नानोळिप्प नेडिन् । काळि वंदिरे वन् पाद मॉदु पूम पटें पोतं । शूळन् तान् किडंद दोत्तु तोंड, मिप्परिग येंड्रान् ॥१०५४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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