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________________ मेरु मंदर पुराण काशिनि नीदि मुदलानवं करंद । वीस नेळि वास मल रेरिय कनत्ते ।। १०४० ।। अर्थ - तीन लोक के अधिपति जिनेंद्र भगवान के देवों द्वारा निर्माण किये, कमल के ऊपर से जाते समय दिक्कुमारिकाएं भगवान पर वृष्टि होती देखकर अत्यन्त प्रानन्द मनाती थी। भगवान जहां २ विहार करते थे उन २ क्षेत्रों में प्रतिवृष्टि अनावृष्टि नहीं होती थी । ।। १८४० ।। मूगर मोळिदार बिडइन् मुडवर्क नडंदार् । शोग मुकिंदा नेवरुं शेविडर मोळि केटार् ॥ कौव मुळिंदोर कुबिदर, कुरुडर विळिपेट्रा । वेग मुळिदा रियन बीर नेळं वोळुदे ।। १०४१|| अर्थ - विभाव पर्याय के उत्पन्न करने वाले मोहादि कर्म को जीतकर अनंतवीर्य श्रादि से युक्त स्वस्थान को प्राप्त हुए श्रहंत भगवान द्वारा विहार करते समय गूंगे लोग बोलने लगे, बहरे सुनने लगे, लंगडे चलने लगे, दुखी जीव सुखी होते थे, क्रोधी लोग कषाय का त्याग करते थे। अंधे लोग देखने लगते थे ।। १०४१ ।। Jain Education International | ४०६ पिरवि रु प युडेय पनिनकुल मोदला । बुरवि इर वाद उर वायव निलत्तु ॥ किरेव निर कादलोड मंगगं दिर् कोंडार् । मरमलि विलाळि युडं मनवनं वंदे || १०४२ ॥ अर्थ - जन्म से ही परस्पर बैर रखने वाले नेवला, सर्प, चूहा, बिल्ली आदि २ जीव भगवान के विहार करने के क्षेत्रों में मित्रता के साथ परस्पर खेलते थे और सभी जीव धर्मचक्र प्राप्त हुए भगवान को नमस्कार करते थे ।। १०४२ ॥ ॥ afoetगडोर विमलन् कमल मेर् कोन् । fsaat येळंदरुळि बंदविवं कंडान् ॥ soar मिनू मंद रे यनंदु सिलर् शोनार् । मौ वन् मलर् तुयवरुं मलरडि परिणदां ।। १०४३ ॥ अर्थ - पाप कर्म को नाश किये हुये विमलनाथ तीर्थकर को देवों द्वारा निर्माण किये ये लाल कमल पर विराजमान हुए जाते देखकर कई राजकुमार महाराज लोग भगवान के समवसरण के आने के समाचार सुनकर राजसिंहासन से उतरकर उनने भगवान को नमस्कार किया ।। १०४३। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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