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________________ n awwwmarwarramme मेरु मंदर पुराण [ ४०५ वाली निर्जरा भावना बोधि दुर्लभ भावना को भाने लगे। इस प्रकार बारह अनुप्रेक्षाओं को सतत अपने हृदय में भाते थे ।।१०२४।। अमल नल वारियगत्तान निळर पोल। तुमिल मिड मूवुलगं तोंड. मरि उदय ॥ विमलनेनु मरिवन मलर पोळिय बिन्नोर । कमल मिस पुलावियोर कावग मददन् ॥१०२।। __ अर्थ-इस प्रकार भावना भाते २ एक दिन तीन लोक की चराचर वस्तु को जानने वाले केवलज्ञान को प्राप्त हए श्री विमलनाथ तीर्थंकर महंत केवली भगवान का समवसरण इधर उधर विहार करते हुए उत्तर मथुरा नगरी के उद्यान में आकर विराजमान हो गया। ॥१०२५॥ अनगन् विनयगल वेदरुळ मेनु मळविर् । कनग नवमरिण मय मोर कमल नरमल रो॥ शने यगल मुडंय वद निवळ ग डोरु मरवार । मन मगिळ नउन विल वानव रमत्तार् ॥१०२६॥ अर्थ-कर्म मल से रहित उन विमलनाथ भगवान के भव्य जीवों के कर्मों का नाश करने के लिये समवसरण सहित विहार करते समय देवेंद्र ने अपने द्वारा भगवान के चरणकमल के नीचे कमल निर्माण करके कमल की कणिका के ऊपर जैसे देव स्त्री नृत्य करती हैं ऐसा निर्माण किया। बास मलर नांगि नवन मेवि इरै बानो। रोजन इरंडगंड मंडब मुंड मै ता॥ रोशनेबरुळ मेन वेळिन् मरिण पुन मुत्ति । नोजने कन् मूडगंड बोदियुड नमत्तार् ॥१०२७॥ अर्थ-तीन लोक के नाथ विमलनाथ तीर्थकर उस कमल पर चार अंगुल अधर विहार करने वाले ऐसा समझकर उस मुख्य मंडप का निर्माण किया और उसके लिये तोन योजन चौडी गली का निर्माण किया ॥१०२४॥ मारुदियुं वास मय मागि मंदस वीसि । पारिन् मलि नडगळ परिविड मुयंडार ॥ कारिन् मिस वंदु वरुणन कमल मादि। बेरि मल कमळ नर नीतुंबले बिट्टान ॥१०२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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