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________________ ॥ ग्यारहवां अधिकार ॥ .वीतभय और विभीषण का मोक्ष जाना * निरं पोरं शांति योंवि निड़ दोदिन में सिदि । तरिवन् शरण मूळ गि यारुहर, करळि येव ।। पिरवि नोरु विञ्चित्त विरंब पेयिरंबिर पेट्र। बर नेरि यदथिन् बदिंग कर शिळं कुभर नानां ॥१७॥ अर्थ-इस प्रकार वह मादित्य देव विभीषण को उपदेश देकर पुन: देवगति में प्रा गया। वह नारकी जीव क्षमा प्रादि परिणाम को धारण करके प्रारिण सयम और इन्द्रिय संयम को निरतिचार पालन करते हुए संसार का सुख शाश्वत नहीं है-ऐसी मन में भावना करते हुए अहंत भगवान का स्मरण करते हुए जिस प्रकार सिह रस में लोहा गलाने से स्वर्ण बन जाता है उसी प्रकार वह नारको जीव अपनी आयु पूर्णकर वहां से चयकर उसने मध्यलोक में एक राजा के घर राजपुत्र होकर जन्म लिया ॥९७०॥ मद्रिद बोपत्तिन् कनिरेवत बयोति याळू। कोट वन् शिरियन् माविन् कारलो शुसी में कोविन् । पेट्रि याळ, वइट.शोवामावेन शिरुव नानि । कोटवर कुलंगळे न्नं कुल मनं विळंके योतान् ॥६७१॥ अर्थ-वह नारकी जीव इस मध्यलोक में जम्बूद्वीप से संबंधित अयोध्या नगरी के श्री वर्मा नाम का जो राजा राज्य करता था जिनकी पटरानी का नाम सुषमा देवी था, उसके गर्भ में प्राकर पुत्र रूप में जन्म लिया,उसका नामकरण संस्कार करके सुदामा ऐसा नाम रखा गया। वह सुदामा अपने वंशके लिये दीपक के प्रकाश के समान प्रकाशमान हो गया 18७१" विन येत्तिन् मुनिव नुत्त विजइन वळरंद वीर । निने वत्तु तोव वैदर निल केत्तरसु मेवि।। कनमोत्त्यो बुहरकु मौंदु कमल पून तक्त्तु वैय्योन् । ट्रन योत्तु मरै मुगत्तार तम्मुलं तोय्यिर् पट्टाण ॥७२॥ अर्थ-वह सुदामा राजकुमार धीरे २ वृद्धि को प्राप्त हुआ और संपूर्ण शास्त्र व शस्त्र कला में प्रत्यन्त प्रवीण हो गया। और सर्वगुण सम्पन्न होकर अपने विरोधी शत्रुदल को बीतने की शक्ति प्राप्त करने वाला हो गया। जिस प्रकार मेघ गर्जना करके जगत के जीवों को शांति करने के लिये पानी वृष्टि करता है, उसी प्रकार वह सुदामा अपने राज्य में करीब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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