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मेरु मंवर पुराण मीटु नरगत्तिर विळाद वगै वेळं डिर् ।
काक्षितले निड्रोळ्गु कादन मुद नीते ॥९६३॥ अर्थ-मोक्ष को प्राप्त करने वाले सम्यक्त्व को छोडकर हमेशा अग्नि के समान प्रात्मा को जलाने वाली यह संसार रूपी दावाग्नि है। उस दावाग्नि में जन्म लेकर अनादि काल से दुख भोगते आये हैं । इस कारण पुनः नरक में अब मैं कभी न आऊ ऐसी यदि तुम इच्छा रखते हो तो अन्य द्रव्य की अपेक्षा से रहने वाले बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहों को त्याग करके भगवान जिनेन्द्र देव के कहे हुए वचनों पर श्रद्धान करो तत्पश्चात् हेय उपादेय को ठीक समझकर हेय पदार्थ को तजकर, उपादेय को ठीक ग्रहण करने वाले बनो ||६ ३॥
वेगळ मद मायै मिग पलिवै विनकुप् । पुगु, वळि नल्ल वल पोरै वळेवु शम्मै । नगै योडु वंतिद लिवै नल्वि नैकु वायदल् ।
पगै युर परिणव तेळि विन् वंगळे पयक्कं ॥९६४॥ अर्थ-क्रोध मान, माया और लोभ ये चार प्रकार के कषाय पाप कर्म के प्रास्रव के उत्पन्न करने वाले हैं। उत्तम क्षमा,मार्दव, प्रार्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग,प्राकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य इन दस धर्मों तथा पागम पर श्रद्धा भक्ति स्तुति आदि करना । दातारों के सात गुणों से तथा पुण्य के उदय से दिगम्बर मुनि ऐसे उत्तम सत्पात्र को दान देना, यह सभी पुण्य का कारण है। इसको भली प्रकार जानकर इन्द्रिय संयम और प्राणि संयम इन दोनों संयम, अभ्युदय नाम के निःश्रेयसपद अर्थात् मोक्ष पद को प्राप्त कराने वाले हैं ।।६ ४॥
येड्रि गदि नींगु वदेनंड्रेद मुरवेडां। निड विन नोंगिय कनत्तिदव नींगु ।। मंडित्तुयर नींगु वदर कर्व मेळ मागि ।
लोंड्र. मुनै लिड्. विनै योरुक्कु मिनि मिक्के ॥९६५।। अर्थ-यह नरक के दुख मुझ को छोडकर कब जायेंगे-इसका दुख तथा चितवन मत करो तथा पार्तध्यान मन में मत करो। इस प्रकार विचार करने से संसार के दुख उत्पन्न नहीं होंगे। इसलिए तुम नरक के दुखों को शांति से सहन करो। सारे दुख समाप्त हो जायेंगे
॥६६॥ सेंड डुनदायुग मुस सेरिदु पेरि दोळिय । निड्र पेरंतुय रिक्वु नोंगु शिल नाळिल् । वेंद्र वर तमर नेरि इन मै युनरु काक्षि ।
योंडि योळि गुण, कन विने येटु मुडन केडकं ।।९६६॥. अर्थ-तुम्हारी नरक की आयु बहुत बीत चुकी है अब थोडा समय और बाकी है यह भी पूरा जायेगा, चिंता मत करो। इसलिये तुम आगे सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और
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