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________________ मेह मेवर पुराण [ ३८५ पद को प्राप्त किया। अववान अहंत देव के पथार्य स्वरूप को न जानकर पंचेंद्रिय विषयों के कारण तूने नरक में जन्म लिया है ॥५॥ प्ररत्तो पुनरंबार लोग मई वायो। मरत्तो भलिवेळ निलत्तु मुरे बायो॥ तिरत्ति निवि रंग्यु निनत्तुरवि सेरि । नरपोर पोरुळुरंप नुन बल्लल फंडु वण्णं ॥६६०॥ अर्थ-अब दया रूपी धर्म के प्राचरण करने से तुमको सद्गति प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त नरक से छुटकारा पाने के लिये कोई दूसरा उपाय नहीं है। यदि तुम इससे अधिक क्रोध करने वाले होंगे तो इस नरक के मुकाबले में दुख अन्य ठिकाने पर नहीं है। इन दोनों के फलों को भली प्रकार देखो पौर प्रात्मा में सुख उत्पन्न करने वाले मार्ग को ग्रहण करो। मैं पापको दुख के नाश करने वाले उपदेश को कहूँगा । सुनो ! ।।६६०॥ मुनत्तुन मिरी वंदवर् कन मेन मुनिद लिड़ि। निने तिरिषु मुन्न यन्धि पयन बेंडे॥ मनत्तिन् मरमेषिन् मिगु पावस वहम् बंदा । लुनै पिनै विलंगि निडे युयित्तिारै याकं ॥९६१॥ अर्थ-हे नारकी ! इस नरक में तुझको दुख देने वाले नारकी जीव तुम्हारे ऊपर क्रोध न करें, तमको कष्ट वेदनाए न देखें-ऐसे मार्ग का तम अागे के लिये प्राचरण करो। इस समय तुमको मन में ऐसा विचार करना चाहिये कि मेरे पूर्वजन्म के किये हुए पापों का फल है । जो मुझे ही भोगना पडेगा। यह मेरे द्वारा किए हुए हैं। इसको सहन करने का साहस होना चाहिये । इसको भोगे बिना मेरा छुटकारा नहीं होगा। इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। कर्म के नाश करने का धर्म के प्रतिरिक्त और कोई अन्य उपाय नहीं है। ऐसा . मादित्यदेव ने विभीषण को कहा ।।९६१॥ परिवन मोदलेवर् शरणं पोगदियायिर् । पिरवि मह सुळिान वळि येळगुवल पिळेति ।। करघु शेरि उन लोड बत्तु वै पेळिता। लिव इल पल तीविन कळेदि ये नि ॥६६२॥ अर्थ-पंचपरमेष्ठी की पूजा स्तोत्र प्रादि को सदेव अपने मनःपूर्वक करते रहने से तेरे चारों गति के भ्रमण के दुख का नाश होगा। तुम अपने क्रोध के द्वारा भारमा के गुण का यदि नाश करोगे तो पुन: २ तुमको संसार में भ्रमण करना पडेगा ।।२।। बोटिनै विळेकु नल काधिन बिट्टि । .. मोतु मर कत्तुपर मुळंगलिन बोळ बाप ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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