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________________ ३८. ] मेर मंदर पुराण येरि वें पडया लिवर बोळवे ळला। रुळ वेतुयरल्ल दुडंबु विडार ॥ करुवागि कडुं परिणाम मिड । येरिया वगैया युष या लिने ॥६४२॥ अर्थ-उस नरक में रहने वाले सभी नारको जीव तीक्षण प्रायुध को लेकर जिस समय नया नारकी नीचे गिरता है उस समय उस प्रायुध से गिरने वाले नारकी जीव पर प्रहार करते हैं और उस नये नारकी का शरीर चूर २ हो जाता है । इस प्रकार नारकी जीवों का शरीर खंड २ होकर पुनः जिस प्रकार पारा खंड २ होकर जुड जाता है , उसी प्रकार उसका शरीर पुनः जुड जाता है और दुख भोगता है ॥४२॥ विनये तुयरत्तं विळं प्पद लाल् । निन वा शेयल मट्रिले नीयिरै॥ मुने मुटुवर कोळ ळ देवरिवन् । उन मुनिन शैवन नेंड ड या ॥६४३॥ अर्थ-उस नरक में रहने वाले नारकी जीव पूर्व जन्म में किए हुए कर्मों के उदय से पुराने नारकी जोव नवीन नारकी को दुख देते हैं। कोई यह नहीं कहता कि तुमको दुख अभी नहीं दिया जायेगा , इनको मारो मत , इन की रक्षा करो, ऐसा कहने वाले कोई नहीं मिलेंगे । और भवनवासी देव उस नरक में जाकर आपस में कलह कराते हैं । वैर भाव की याद दिलाते हैं और आपस में लड़ाते भिडाते हैं ।।६४३।। कन, मिड इन्ड्रि येळ पशिया । सुन उडून वंदुलगत्तुळ नन् । सिने हल्लेन कायं द विरुबिन नी । रणयं बडिया लनया बडुमे ॥१४४।। अर्थ-उन नारकी जीवों को अत्यन्त तीव्र भूख लगती है। उनकी खाने की तीव्र इच्छा होती है तब सभी नारकी जीवों को चारों मोर.विष पीर तपे हुए लोहे की कढाई में गर्म पानी डालकर उस पानी को स्पर्श कराते ही सारा अंग व हाथ पांव जल जाते हैं। वह प्रादित्य देव कहने लगा कि हे श्यामवर्ण शरीर धारण किये हुए नारकी सुनो ! ॥४४॥ मेरु नेरिरुप्पु वटै इट्टवक्कनत्ति नुळळे । मोरेन उरुक्कुं. शीत वेप्पंग निकीळ मे। लार्व मोलरिवन द्रव नलिने बाब तमिर् । कार मुगिल बम्प गीत वेप्पंगळा कंडाय ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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