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________________ मेर मंदर पुराण [ ३७९ में एक सागर का पांचवा भाग, नवें पटल में एक सागर का छठा भाग, दसवें पटल में एक सागर का सातवां भाग, ग्यारहवें पटल में एक सागर का पाठवां भाग व बारहवें पटल में एक सागर का नवां भाग होता है । तेरहवें पटल में पूर्ण एक सागर प्रमाण तक उनकी आयु होती है।९३८॥ मुळ मूं.यर वा मुबलाम पुरइन् । मुळ मूं. विल्लेळ् विरला रुळकी । लेछु वाइड यूर विल्ल बळवू । वळुवा विरुदोर मिरत्ति यदाम् ।।६३६॥ अर्थ-पहले नरक के प्रथम पटल में रहने वाले जीव का उत्सेध तीन हाथ रहता है। उसके बाद प्रथम नरक के अन्तिम पटल में उत्सेध सात धनुष, तीन हाथ, छह अंगुल होता है। दूसरे नरक में अन्तिम पटल में क्रम से बढ़ते २ पंद्रह धनुष, दो हाथ, बारह अंगुल उत्सेध है । तोसरे नरक में अन्तिम पटल में क्रम से बढ़ते २ इकत्तीस धनूष, एक हाथ उत्सेध है। चौथे नरक में बासठ धनुष, दो हाथ है। पांचवें नरक में एक सौ पच्चीस धनुष है। छठे नरक में दो सौ पच्चास धनुष है। सातवें नरक में नारकियों का उत्सेध पांच सौ धनुष रहता है । बीच में रहने वाले नारकी जीव तथा ऊपर रहने वाले नारकियों का उत्सेध इससे दुगुना रहता है। ॥३६॥ पुगे येंदु मुवर् पुरै पुक्क वा । मुग यार विळुवा रुळवा युवेला ॥ पुगये ळोडन्यूर विल कावद मून् । है गै यार विळुवार मुदलिटि नूळार् ॥६४०॥ अर्थ-प्रथम पटल में रहने वाले नारकी जीव पांच सौ योजन नीचे से ऊपर गेंद के समान उछलता उडता जाता है और वहां से उडकर पांच योजन से नीचे गिर जाता है । प्रथम पटल से तीसरे नरक तक रहने वाले नारकी जीव पांच सौ धनुष ऊपर उडकर फिर . ऊपर से सर नीचे मौर ऊपर पांव करके नीचे गिर जाते हैं ।।९४०।। येळवा यदिरट्टि इरट्टिय दाम् । वळुवा विरुवाय पुरै दोरं बरा ।। वेळुवा नरग तियल बा यवैङयू । ट्रोळिया दूविळं तेळमोजनये ॥४१॥ अर्थ- इस प्रकार प्रथम नरक में जितने नारकी ऊपर उछलते हैं, उसके १५९ .. योजन तक ऊपर उछल कर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वृद्धि होकर सातवें नरक में रहने वाले जीव ५०० योजन ऊपर उछल कर नीचा सर करके गिर जाते हैं। इसी प्रकार उनकी प्राय है। तब तक इस नरक में रहना पड़ता है। उस वक्त तक ऐसा ही दुःख भो है । उस वक्त तक ऐसा ही दुख भोगना पड़ता है। वहां सुख लेश मात्र भी नहीं है ।।६४१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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