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मह मंदर पुराण
मत करो। क्योंकि जिस नरक में तुम रहते हो उस नरक के नीचे नरक में रहने वाले नारकियों को तुम से भी अधिक दुख हैं। यदि ऐसा मन में विचार कर लेगा तो इससे तुम्हारा दुख कम हो जायेगा। अब तुम से नीचे के नरकों में रहने वालों के संबंध में संक्षेप में वर्णन करता हूँ ।।६३॥
येळ्ळ नरग नाम मिरद नम् चक्क वालु । वाळिय पंकम् धूममं तमंतम तमत्त मांगु । पाळि इन्दगन्गळ शेरिण पगित कदोप्प बंद ।
वेळिनु पुगवेन्वत्तु नांगु लक्कंगळामे ॥६३६॥ अर्थ-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा, इस प्रकार सात नरक हैं। इन नरकों में श्रेणीबद्ध होकर रहने वाले पुष्प, प्रकोणक ग्रादि २ सभी मिलकर चौरासी लाख बिल रहते हैं।।९३६।।
वंड, मुन्दु मैळ मोव, पत्तोडोंद्र । निड़ मूंड्रोडु पत्तु निरैयत्तु पुरंगळ मेन्मे ।। लोंड, मूंडूळ पत्तु मोरु पत्तेळिरु पत्तीरि ।
निड़ मंड्रोड.मुप्पानाळि कोळ पुरै तोरायु ॥३७॥ अर्थ-सातवे नरक में पांच बिल हैं। छठे नरक में पांच लाख कम एक लाख बिल हैं, पांचवें नरक में तीन लाख व चौथे नरक में दस लाख बिल हैं। पन्द्रह लाख बिल तीसरे नरक में है। तथा दूसरे नरक में पच्चीस लाख व पहले नरक में तीस लाख बिल हैं। इस प्रकार एक के ऊपर एक बिल रहते है । पहले नरक में रहने वालों की प्रायु उत्कृष्ट एक सागर की होती है। दूसरे नरक की उत्कृष्ट आयु तीन सागर होती है। तीसरे नरक की उत्कृष्ट पायु सात सागर तथा चौथे नरक की दस सागर की उत्कृष्ट प्रायु होती है । सत्रह सागर की आयु पांचवें नरक की और बाईस सागर की उत्कृष्ट प्रायु छठे नरक की तथा सातवें नरक की उत्कृष्ट प्रायु तेतीस सागर की होती है। इस प्रकार के क्रम से नारकी जीवों की प्रायु होती है ॥६३७॥
मुदला नरगत्तिन मुदर पुरयिर् । पदि नाइर, मांडुगळां शिरुमं ॥ विवि यान मिगैया युग मेळन कीळ ।
पवियार् परमा युग मल्लन वाम् ।।३।। अर्थ-पहले पटल में रहने वाले नारकी जीवों की आयु नव्वे हजार वर्ष की होती है। दूसरे पटल के नारकियों की आयु ६० लाख वर्ष, तीसरे पटल में रहने वालों की संख्यात पूर्व कोटि वर्ष की होती है। चौथे पटल में एक सागर की आयु में से दसवें भाग में एक भाग रहती है। पांचवें पटल में दस भाग के दो भाग अायु रहती है। छठे पटल में एक सागर के तीन भाग प्रायु होती है । सातवें पटल में एक सागर में चार भाग प्रायु होती है । पाठवें पटल
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