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________________ ३६८ ] मेरु मंदर पुराण शरीर में से रक्त की धारा इस प्रकार निकलती थी मानों नीलमणि के पर्वत के अंदर से पानी की धारा निकलती हो ॥६०३|| विपडे शरंगळ् वीळं तु मेगंगळ् पोल मायं च । मरपडे युडन ट्रेळंदु महंगल पोर पोरुदु मायं द ।। विर्पयं पिळद वैवा दिलिइन मिन्ने पोंछ । कोट वर् कुडैग डि नरंददुकुरुदि यारे ॥६०४॥ अर्थ-वर्षा काल में जिस प्रकार जल वृष्टि होती है उसी प्रकार दोनों राजानों के दल में सिंह के समान बाणों की वर्षा होती थी। इस प्रकार परस्पर घमासान युद्ध हो रहा था। उस समय शस्त्रों के द्वारा हाथियों को छिन्न भिन्न कर दिया अर्थात् महान तीक्ष्ण शस्त्रों से हाथियों के टुकडे २ कर दिये । वे शस्त्र बिजली की चमक के समान चमकते थे । नदी के प्रवाह के समान उन हाथियों का रक्त निकलकर बहता था। उनके खून में मरे हुए योद्धा बह २ कर जाते थे ।।९०४|| काल पोर पेन्न नेटि कनिगळ पोर ले गळ वोळंद। . कोल पोर कुळित्त यान करवि शेर् कंद्र मोत्त । वेल पोरविकरंद धीर देर्गनार विळ म नोइन् । माल पोरक्किडंद नेजिन मैदर पोन् मयंगि नारे ।।६०५।। अर्थ--युद्ध के समय ऐसा प्रतीत होता था मानों ताड वृक्ष के फल पककर जोर की हवा चलने से गिर जाते हैं। उसी प्रकार उस भीषण युद्ध में से योद्धाओं के मस्तक कट २ कर गिर जाते थे। कई शस्त्रों के प्रहारों से मूच्छित होकर गिर जाते थे ।।६.५।। उहमिटिड मील मले यन उएंड वेलन् । वरमिश परदि पोल मन्नवर बंदु बीळदार ।। कर पोह कलंगळ पोल तेर तोग विळ पोन । पुरविगळ करय शारं व तिरं यम पोरुतु मायं व ॥६०६॥ अर्थ-जिस प्रकार नीलमणि पर्वत पर गिरने पर पत्थर चूर २ हो जाता है उसी प्रकार बाणों के लगकर गिरने से हाथियों के टुकडे २ हो जाते थे। पर्वत के ऊपर जैसे अनेक राजा लोग बैठे हों उसी प्रकार राजा लोग हाथी पर बैठकर युद्ध करते थे। युद्ध में हजारों शत्रु की सेना मर जाती थी। जिस प्रकार समुद्र से जाने वाले जहाज कहीं टकरा कर समुद्र में दूब जाता है उसी प्रकार उस राजा के रथ प्रादि वाहन युद्ध की मार से टुकडे २ होकर नीचे मुक जाते थे ।।१०६॥ कोट बेन मन्नर वेळ कुंवत तलुबि बोळ बार। बेटि पोर कोगिन कोंगे मेमिनार तम्मै योत्तार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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