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________________ मेह मंदर पुराण [ ३६६ प्रट बोर केरकरके कौविय नरिकन्नादि। पटिय कुरळि शेल्वाग्न मुगं पात पोलुं1०७॥ अर्थ-हाथी के ऊपर रहने वाले राजा लोग तीक्ष्ण शस्त्रों से घायल होकर नीचे पडते समय हाथी के मस्तक को ऊपर से जिस प्रकार जयश्री के स्तन को पकड कर कामी लोग प्रानन्द को प्राप्त होते हैं , उसी प्रकार राजा लोग घायल होते समय हाथी के वक्ष स्थल को पकड कर नीचे गिर जाते थे। उन कटे हुए हाथों को उस समय गीदड अपने मुख में चमकीले शस्त्र सहित जाते समय उसका मुख शस्त्र में ऐसा दीखता था जैसे कोई दूसरा गीदड हो जा रहा हो ॥६०७॥ विळदुडन् किउंद वेळं विट्ट मूर्चन गळ् पांदळ । सेलू कुगें शिरिदु पोंदु शिरंब दो पोरि । नळदुग्न किउंद वीर ररुगु सेनरिय कंड। मुळंजि युरंगु शिगं मुनिवदे पोन मुरंड्रार् ॥८॥ अर्थ-उस युद्ध में सैनिकों के अवयव छिन्न भिन्न होकर पड़े हुए थे। पडे हुए घायल हाथी श्वास इस प्रकार छोडते थे मानों कोई एक बडा अजगर सर्प अपने विल से बाहर पाकर फुकार कर रहा हो। उसी प्रकार हाथी श्वास निःश्वास लेते थे। उस समय घायल पडे हुए सैनिक लोग जब बैरी लोग उनके सामने से चले जाते थे तब मरते समय भी पडे २ गर्जना करते थे ॥१०॥ वासिग ललक्क वाळि पायं विर मनं कलंगि। बोसिन पारमेलाय विळदंन वर पोंड। पूरालिर पोंडस बोरर तुरा मा मेन्यूँ पोयन्न । लासयार् पोरदु बीळंदा रबैय राताले ॥६०९॥ अर्थ-उस युद्ध में अनेक घोडे मरण को प्राप्त हुए। उस लड़ाई में प्राण छोडते समय योद्धा ऐसा मन में विचार करते थे कि यह मरण हमारे लिए शुभ है क्योंकि युद्ध में वीर पुरुष यदि मरण करता है तो वह देवलोक में आकर पैदा होता है। ऐसा शास्त्रों में कहा है । हमको मरना ही है। परन्तु पुढस्थल में भगवान का स्मरण करते हुए प्राण छोडेने तो हम देवगति में जाकर जन्म लेंगे और वहां अनेक मप्सरामों के साथ सुख से जीवन बिताने HEOL करल कवरंबेळंदु कारण सावं कार। पकने मारिजि पलंकेर पलं बड़.॥ कुसरे पुरवियोमा हरलेन कोळंबर शाये। पर मनुतापोर पुलं पोनु मेरोबार ॥१॥ मर्ष-उस युद्ध में प्रतिवासुदेव बारा बाण को घोडे हुए देख वासुदेष की सेना पीचे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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