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________________ मेर मंदर पुराण -ra... mminarwwin-nawwara... .... देखकर उनके विरोधी वासुदेव और प्रतिवासुदेव तथा वीतभय और विभीषण ये दोनों हाथी पर बैठकर सेना सहित युद्ध स्थल की भोर प्रस्थान करने लगे ॥९००। तुरगं कडिरंगळान पुरा वेरि वीर राणार् । करि मगरंगळान कादर पडे काल दाग।' पोर पडे बीरर कैवाळ् पुरंडळु मीम्म लाग। करै शेरि नावाय तेराय कावलर् कामरागार ||०१॥ अर्थ-युद्ध करते समय दोनों ओर के योद्धा अपने २ घोड़ों पर बैठकर परस्पर अपने प्रायुधों का प्रयोग करते थे। जिस प्रकार समुद्र में मगरमच्छ इधर उधर भागते हैं उसी प्रकार योद्धा लोग रणभूमि पर दौड धूप करते थे। जिस प्रकार हाथी को रथ में जोता जाता है और वह हाथी उस रथ को खींचता है उसी प्रकार योद्धा परस्पर एक दूसरे को घसीट कर ले जाते थे। वे सैनिक योद्धा अपने २ हाथों में शस्त्र लेकर युद्ध करते समय ऐसे प्रतीत होते थे, मानों समुद्र में छोटी २ मछलियां उछल कूद कर रही हो। उस समय यदि उस रपको देखा जाय तो चे रथ समुद्र में बहकर जाने वाले बडे २ जहाज के समान प्रतीत होते थे। इन राजामों को देखा जाय तो उस दल में छोटी २ मछली के समान प्रतीत होते थे ॥१.१॥ विलोड़ विलवंदे वेलोड वेल्वंदेट । मल्लोडु मल्ल लेट वाट् प. बाळोडेट। पोल कलि याने योडु तेगळं सम्मिलेट । मल्लले पुरवि योडु पुरवी नाट् और पोरे ॥६०२॥ अर्थ-ये दोनों राजा युद्ध करते समय में अपने-अपने हाथों में शस्त्र, बल्लम, माले आदि लेकर परस्पर में घनघोर युद्ध करते थे। जैसा प्रतिपक्षी राणा प्रपने हाथ में प्रस्थ नेता था उसी के समान दूसरी पोर के राजा भी वैसा ही शस्त्र लेकर लडते थे। और हाथी के ऊपर चढकर युद्ध करते समय जो प्रायुध घे रखते पे उसी के समान दूसरे पक्ष वासे भी पस्त्र रखते थे। इस तरह घमासान युद्ध करने लगे ॥६०२।। काळपोर कवलि कान कलि दुग्न मॉब पोर । कोल पोर कोरिह नीटं कुडे यो मद, बीच ।। वेल पोर कुरुवि कुंचि मिळि बिट्टे मील। माल्वर शेंदर दादिन कुमिळि बंदळगई ॥१०॥ अर्थ-उस युद्ध में जिस प्रकार बड़ी भारी मांधी या बालने पर मंगलबार वृक्ष उखड कर गिर जाते हैं, उसी प्रकार युद्ध में शस्त्र के रा परस्पर में शाम कामी भास होता था। उन प्रायुधों के प्रयोग से हाथियों के शरीर में वाण मासे थे और उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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