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________________ aamanmamamaleramananmirmwom. Miwwaprnwrwinar मेर मंदर पुराण मा बेल वेबर कंजियन्नवर नहुंद वैयत् । विच्चे ये निरंत वीतभय निवनें. सोन्नार् ।।८६७॥ प्रर्ष-उस पच्युत कल्प में देव हुमा रत्नमाला प्रायिका का जीव वहां के देवगति का सुख का अनुभव करके वहां से व्युत होकर अयोध्या का अधिपति राजा अहंदास की पटरानी मुरता के गर्भ में पाया और नवमास पूर्ण होने के बाद उसने पुत्र रत्न को जन्म दिया। पुनोत्पत्ति की खुशी में राजा प्रहंदास ने अत्यन्त प्रानन्दित होकर उस देश के या चकों की इच्छा के अनुसार अनेक प्रकार के दान दिये। और उस पुत्र का नाम संस्कार करके बोत भय नाम रखा ।।८९७|| मदंर मन्नन् देवि बडिनुन पगळि वाट कट् । शिट्रिट पर यल्गुर शिनबत्तै शिरुव नागि । सुद्रिय कादलाल बंदि रतनायुंदनुत्तोंड। बेटि बेळ्वीरन पेहं विबोड नेड, सोनार् ॥८६८।। अर्थ-उस महदास की दूसरी रानी और थी जो सर्वगुण सम्पन्न थी और उसका नाम जिनदत्ता था । उस जिनदत्ता के गर्भ में पूर्व जन्म के रत्नायुध राजा का जीव जो तप करके प्रत्युत स्वर्ग में देव हुमा था, वह वहां देवलोक का सुख भोगकर आयु के अवसान पर इस जिनदत्ता रानी के गर्भ में पाया और नवमास पूर्ण होने के बाद पुत्ररत्न को जन्म दिया। पौर नाम संस्कार करके उसका नाम विभीषण रखा गया ।८६८।। राम केशवर गळागि येळिन् यदि नीळ मेग । तरा तळ तिळिव पोलवार दरुयम पुगळं पोंड्रम् ॥ करामलि कडलिनोद मदि योडु पेरुगुं वणम् । पराभवं पगेवर काकं पडियिनाल वळलु सेंडाल ॥८६॥ अर्थ-वह विभीषण अत्यन्त सुन्दर शरीर वाला था। जिस प्रकार नीले रंग का बारस नाचे उतर कर पाया हो। ऐसे वे वीतभय (बलराम) और विभीषण (केशव) पूर्ण मासी के चंद्रमा के समान प्रकाशमान मालूम होते थे। कम से ये दोनों वृद्धि को प्राप्त हुए। ये महान बलबान तथा शत्रु राजामों को परास्त करने वाले थे |६| कुल मले इरंड पोल कोद्रव कुमर रोंगि । निल मगट निरव राग निड़ तंपगवन बि ।। मसे मिस परुदि योड़ माल् कड लिरंड बंदु । निममिरे पोरुब पोंड, निद्र, पोर् तोगि नारे ॥१०॥ प्रर्ष-ये दोनों पराक्रमी कुमार कुलगिरि पर्वत के समान उन्नत होकर भली भांति प्रजा के प्रति वात्सल्य भाव रखकर राज्य करते थे। इस प्रकार न्यायपूर्वक राज्य करते २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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