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मेर मंदर पुराण
[ ३६५ विलंमल वीळारु वि वेळ मुम्मंद तेरल वेरि । कलंदुरन शत्रु मार कयंवले पट्ट काले ॥ संजलं पिरिद कादलार तमक्कंड पोळंदि ।
ललगलं कुळलिनार् कोल मर दिनी दोगु नाटुळ् ॥८६४! अर्थ-उस धातकी खंड द्वीप में रहने वाले ऊंचे २ पर्वतों पर से पानी के झरने नीचे बह २ कर छोटे २ तालाब प्रादि के रूप में बहते हुए सरोवर में मिल जाते हैं। इस प्रकार सर्व प्रकार शोभने वाली गंधिला नाम की नगरी है। उस नगरी के बहकर जाने वाले पानी में जिस प्रकार छोटे २ शंख. मोती ग्रादि बहते जाते हैं और उनकी आवाज होती है उसी प्रकार उस नगर में रहने वाली स्त्रियों के जाते आते समय उनके पांव की पैजनियों के मधुर २ शब्द सुनाई देते थे ॥१४॥
कदळि इन कुल गळ् शपोर् कुळ कनि कांड, नांड। मवले ये शेरिद व मईलन्न चाय लातं ॥ कुदले यम पुदलवकुन्न कोडुत्तेडुत्तुबक्कुं शवन् ।
मलय माउ मूदुरयोदि मानगर मामे ॥६५॥ अर्थ-उस गंधिला देश के मुख्य २ नगर सुन्दर और सोने के वर्ण के समान शोभायमान हैं। उस देश में कदलीफल, ताड वृक्ष के फल अनेक प्रकार के पेड चारों ओर महान सुशोभित होते थे। वहां के लोग कदली के गुच्छे.सुपारी के गुच्छे, ताड के गुच्छे लाकर अपने२ घरों में हमेशा बांधे रखते थे। घर में रहने वाले छोटे बच्चे जब उन गुच्छों को देखते थे तो उनको लेने के लिये रोने लग जाते थे। तब उन बच्चों को उनके माता पिता उन गुच्छों के फल फूल दे देते थे ।।८६॥
इरवि पोदाब वोपत्तिळेवर् बदन मेन्नु । मरविंद मलरत्तोंड, मरसन ट्रानरुपदासन् ।। पर पुरै माड मूदूर् मट्रिबर् किरवन ट्रेवि ।
सुरि कुळर् चैववाय तोग सूक्दै बाळाम् ॥६६॥ अर्थ- उस नगर में बड़े २ महल शोभायमान होते थे। उस गंधिला देश से संबंधित अयोध्या नाम की नगरी थी जिसका प्रहदास नाम का अधिपति था जो प्रत्यन्त प्रतापी था । जिस प्रकार सूर्य उदय होते समय अपने प्रकाश से कमलों को प्रफुल्लित कर देता है उसी प्रकार वहां का राजा अपनी प्रजा को तथा अपनी स्त्री को सुख देने वाला था। उसकी पटरानी का नाम सुरता पा जो सर्व गुण सम्पन्न महान सुन्दर थी ।८६६।
मच्चुद किरव नाय वरदन माल येंद । कन्चरिण मुल नाटकु पुरल्बनाम् पिरंद काले ।
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