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________________ मेह मंदर पुराण मलयं वावियं कानुमेवियं । वलयुं विल्लं वान् पोरियु मादिया । यले संवारगळ कंजि नेजंळिन् । तुलं विलाय तुयर् वेळक्कुमे ॥८२८ ॥ अर्थ - तिच गति में उत्पन्न हुए पशु पर्वतों में सरोवर के निकट जंगल में, पानी की नाली में रहने वाले जीव हिंसकों के द्वारा मारे जाते हैं । बलवान पशुओं के द्वारा उनका भक्षण होता है और महान दुख सहन करना पडता है ||८२३|| ऊन काररुं पोर्से वीररुं । ती वेल्वियं तीय देवसु ॥ मोन मानव रादि दुवर् । तानुडंविर्ड शाब जातिये ॥ ८२६ ॥ अर्थ- मांसभक्षी मनुष्य योद्धा लोगों के द्वारा प्रज्ञान से तथा प्रज्ञानी लोगों के द्वारा करने वाले यज्ञ, चांडाल यादि नीच जाति तथा अनेक पापी मनुष्यों के द्वारा. हरिण, बैल, भैंसे बादि की बलि दी जाती है। इससे भी उन जीवों को महान कष्ट भोगने पडते हैं । = २६ Jain Education International कूरिरुंवि नार् कुडुमि पोळबुं । भार मेट्र्युं पादं यापवं ॥ बारणं तुयरंदु मट्रय । बेरु मूदियु मेरंदु नैय्युमे ॥६३०॥ [ २४३ अर्थ - अत्यन्त बडे शरीर को प्राप्त हुए हाथी को अंकुश मारने तथा पांवों में लोहे को सांकलों से बांधे जाने से उनके दर्द होने से तीव्र तथा प्रसह्य दुख सहना पडता है। तथा घोडे, बैल, ऊंट प्रादि जीवों को गाडी में जोता जाता है। हल चलवाया जाता है। समय पर दाना पानी नहीं मिलता है मौर इस कारण उन जोवों को महान बाधा व दुख जोबना पडता है ।।६३०|| इप्पड विलांगिर पिरप्पार् कडा । मेडि पट्ट वेरेंडि बिडिन् । मे पडत्तुर बाबु विऴुत्तव । सोप्पिन् मायति नोकुळ बागलुं ॥६३१॥ अर्थ- पहले कहे अनुसार पशु पर्याय में कौनसे जीव उत्पन्न होते हैं ? बाह्य और अभ्यंतर परिग्रहों को मनःपूर्वक जिन्होंने श्याय नहीं किया और नितंब मेष को धारण कर मायाचार करने वाले को पशु शरीर धारण करना पडता है ॥६३९॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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