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मेरु मंदर पुराण
अर्थ-क्षीरसमुद्र के पानी के समान प्रत्यंत मधुर, दूध प्रादि भोजन सामग्री को लाकर एक सोने के पात्र में रखकर उनकी स्त्रियां अपने पति को देते समय उनकी इच्छा न होने पर भी उन स्त्रियों की भावना को पूर्ण करने के लिये वे भोजन करते हैं । पर पूर्वजन्म में पाप कर्म के उदय से सारी संपत्ति वैभव होने पर भी उसका भोग नहीं कर सकते 鹭 | राजा होने पर भी तीव्र पाप के उदय होने पर निद्य कर्म करके घर २ जाकर भीख मांगना पडता है। फिर भी पेट नहीं भरता । महान दरिद्रता घ्राने पर भी वह मरने की इच्छा नहीं करता है । अनेक कष्ट सहता है । यह सब पाप कर्म का उदय है ।।७६६ ।।
तुरं इनं नुय्य वाय कंडुगि लुडुप्पि नोंदु । करंब थोनरळु मलगुर् कर्पग वल्लियेन्नार ||
तेर हिडे बीळवु तोडां शिलतुनि युडुप्पर शेल्व ।
मोरुवर् कन् नेंडू निल्ला बुरुदि कोंडोळुगु गेंड्रान् ॥७६७॥
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अर्थ
- प्रत्यन्त मधुर रेशम के वस्त्रों को पहनने वाली स्त्रियां कितना मोह करती है । यह सब पुण्य कर्मों के उदय का कारण है और तब तक ही भोगता है । पाप कर्म के उदय माने पर वे ही फटा हुआ मैला कपडा पहन कर गुजर करती हैं। ऐसी यह क्षणिक संपत्ति है, जो वेश्या के समान है । प्राज इसकी बगल में कल उसकी बगल में है। इस कारण धर्म ध्यान करो। इसी में सुख शांति है ||७६७||
इनयन् पलवं शोलि बज्जराय दनुं पिन्नं । तनै यनं वित्तु पोगि चक्करायुवनं शारं तु ॥ मुनिवनर कमल मन वडिइ नं मुडिइर् ट्रोटि । विनइन् पयन् कडमं वेदविन नडिंग केंड्रान् ।।७६८ ।।
अर्थ - इस प्रकार धर्मोपदेश अपने कुमार को राजा वज्रायुध ने दिया और उस पुत्र रत्नायुष को राज्यभार देकर उसका राज्याभिषेक किया और अपने पिता मुनि चक्रायुध के पास जाकर प्रार्थना की कि हे भगवन्! अनादिकाल से संसार रूपी समुद्र में डूबता तैरता आया हूं । मेरा इस जगत से उद्धार करो। ऐसी प्रार्थना की ।।७८८ ||
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पुले मगरेरिनुं शाल पुथबलि युडंय रागिन् । निल मगट् किरंब रागि निड्रिडं तिरुवु मंगे ।
मलं इन कुलत्त रेनुं पुयवदिम मायं व पोळ बिर् । टूलं निल नुरुति योझार ताळने तुळेय रावार ॥७६॥
हे भगवन् ! नीच जाति में जन्म लिया हुआ जीव पूर्व जन्म के पुण्योदय से राजसुख के भांग भोगता है । और श्रेष्ठ कुल में जन्मा जीव यदि पूर्व कर्म का पापोदय श्रा जाय तो वह नीव लोग के समान श्राचरण करता है ।।७६६ ।।
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