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मेह मंदर पुराण
[ ३३३ विन वसमा यविद बोरिला वाट्कै तन्न।। निनदोरु मुळ्लि निड,नहुगिड़ मडगि नोद.॥ विनं गळे वेडिटेंडन विळुक गुणं पोहंदि मोळा ।
निनवर मुलर मैव निदियान वंद देंड्रान् ॥८००॥ अर्थ-कर्म से उत्पन्न होने वाले इस भयानक ससार में यदि मन में प्रात्म-कल्याण का विचार न किया जाय तो हमेशा संसार में वह रुलता ही रहता है । और उसको अनेक प्रकार के शोक दुख उत्पन्न होते हैं इसलिये संयम पूर्वक जिन दीक्षा लेकर पूर्व जन्म के किये हुए कर्म का तपश्चरण द्वारा नाश कर मोक्ष सुख को प्राप्त करने की मेरी भावना हुई है। मैं
आपके पवित्र चरण कमलों की शरण में आया है। ऐसे अपने पिता चक्रायुध मुनि से वजायुध कुमार ने प्रार्थना की ।।६००।
समें तमम शांति कांति दम्या मालिदि याक नोकि । यम वरु तोळिल रंडि येच्चंग लेळ मिड्रि॥ नमर पिरग्ब विडियोळिवल मादव मिदामे ।
अमंग विडिरवन् सोल्ल वरंतवन तोडगि नाने ॥८०१॥ ___ अर्थ-इस प्रकार मुनि चक्रायुध ने वज्रायुध कुमार की प्रार्थना सुनकर पुनः धर्मोपदेश दिया उस उपदेश को सुनकर वह अत्यन्त प्रभावित हुमा और उत्तम क्षमा धर्म को धारण कर वह कुमार पंचेन्द्रिय विषयों को त्याग कर सम्यकचारित्र को प्राप्त कर, प्रात्मा का स्वरूप समझ कर षट् काय के जीवों की रक्षा करने वाले होकर सात प्रकार के भयों से रहित हो गया। और अपने मित्र, बंधु, बांधवादि स्त्री, पुत्रादि पर समता भाव होकर सर्व कुटुम्ब का परित्याग करके उस कुमार वज्रायुध ने मुनि चक्रायुध से जिनदीक्षा ग्रहण की।
1८०१॥ अरियन शैय बना रांडव रंड्रियारे । वरिशइन् मन्नन् मैंदन मैंदन बग्यं तन्न । योरुदुगळ् पोल विट्टा लगेला मिरज निड़ा।
रिरधिरे यंडि निड बिरुळ कवि ळलु मुंडो। ॥८०२॥ अर्थ-सज्जन लोगों के प्राचरण में कितने भी कष्ट हों, उसको वे मधूरा नहीं छोडते, पूरा ही करते हैं। और वे ही उसका फल भोगते हैं । यही सज्जनों का लक्षण है। इन्हीं को सज्जन कहते हैं । इस प्रकार सद्गुणों को प्राप्त हुए राजा अपराजित (मुनि) उनका पुत्र चक्रायुध मुनि और चक्रायुध का पुत्र (मुनि) वजायुध ये तीनों ही तपश्चरण भार को धारण कर एकत्व भावना में स्थिर हो गये। जिस प्रकार सूर्य अन्धकार का नाश कर देता है। उसी प्रकार के तीनों महामुनि सद्गुण से युक्त अपने प्रज्ञानाचंकार को नाश करने वाले हो गये ।।८०२॥
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