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________________ मेरु मंदर पुराण [ ३२३ अर्थ-सुगंधित सुन्दर सुमन की भांति मृदु शरीर वाली परम सुन्दरी राजकुमारी रत्नमाला के साथ विधिपूर्वक कुमार वज्रायुध का शुभ विवाह सम्पन्न हो गया और बाद में दोनों दम्पति अत्यंत हर्षोल्लास पूर्वक परस्पर में रतिक्रीडा करते हुए स्वछंद रूप से वनोपवन में इस प्रकार रहने लगे जैसे कोई मदोन्मत्त गज हस्तिनी के साथ वन प्रदेश में स्वच्छंद हो कर भोगोपभोग करके सुखी होता है. ।।७७२॥ इब नीर कडले येरि इशोदर यान देव । नंबिनार शिरुवनाना नर गण माले कंड.॥ नंदिय मदिये फंड नळि कडल पोंड ज्ञाल । मंदमिलुवगै यैद वरद नायुव नेंड्रारे ।।७७३।। अर्थ-पूर्वजन्म में यशोवरा नाम की जो प्रायिका थी वह अपने उत्तम तप के प्रभाव से समाधि पूर्वक शरीर को त्यागकर कापिष्ठ कल्प में पर्याय प्राप्त की और स्वर्गीय संखों को भोगने के बाद वहां की आयु पूर्ण हो जाने पर स्वर्ग से चलकर पृथ्वीतल में रत्नमाला के गर्भ से पुत्र रत्न रूप में जन्म लिया। उसका जन्म होते ही प्रजाजनों में इस प्रकार अपार हर्ष उत्पन्न हुआ जैसे पूर्ण चंद्रमा के समय सागर में ज्वार भाटा उठता है। उसका नाम रत्नायुध रखा गया ।।०७३।। वारि सूळ वैयत्तिन् कन् धरमय केडेक्क बंद । . पारिजादत्तिन् कंडिर् परि विडि बद्दु मैंदन् । वेरिसूळ कूद लार वेल्विया लेवि ईबम् । पूरिया मनत्त नागि भोगत्ति नाट्र वीळंवान् ॥७७४॥ अर्थ-कल्पवृक्ष प्राप्त हो जाने पर जिस प्रकार सांसारिक समस्त सुखों की उपलब्धि से प्राणी हर्षित होता है, उसी प्रकार रत्नायुध राजकुमार सर्व सुविधाओं एवं सुखों से समन्वित प्राप्त हुआ। और वह राजकुमार अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह करके सुखपूर्वक काल व्यतीत करने लगा ।।७७४॥ तानुं तन्मगर्नु पिन्ने यवन् मगन् मगनु मायपे । राणंदत्तछंदु गिड़ नल्लपरादितन् पो॥ यूनन तीर तवत्ति लोट, शेरित मादवन येत्ति । ईनं तोविन कटकाकु मुपाय मोन्निरंच मेंड्रान् ॥७७॥ अर्थ-उस समय अपराजित राजा अपने पुत्र पौत्रादि विपुल परिवार को देखकर प्रत्यंत हर्षित हुप्रा । कुछ दिनों के बाद एक पिहितास्रव नामक मुनि महाराज कहीं से विहार करते हुए प्राकर नगर के उद्यान में ठहरे। मुनिराज का शुभागमन सुनकर राजा. अपराजित अपनी रानी सहित विनीतभाव से जाकर दर्शन बंदनं करके मुनि महाराज से निवेदन किया कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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