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मेह मंदर पुराण पुरंबुळ वळमु सोल्लिर पुरिदुळो पार्ष कन्न।
तिरंबिडा वर्गय सेग्युं शेप्पुव दिनि मनेन्नो ॥७६६॥ पर्य-उसके केश इस प्रकार चमकते थे जैसे कि अनेक नील रत्न एक साथ एकत्रित होकर प्रकाशमान होते हैं। उसकी शोभा जिसने एक बार देखली उसकी इच्छा किसी अन्य स्त्री को देखने की नहीं होती थी। उसमें इतने सुलक्षण विद्यमान थे जिसकी उपमा संसार में किसी अन्य स्त्री से नहीं की जा सकती बी ॥७६६॥
मइलिय लन्नं पोलु मेन्नई मान्ने नोक्षं। कुइल् कुळन मळले नल्लि या मोळिमलर् कोडिय नाडन् । नियल वेला सूदरार चक्करायुद नरितु पिन्ने ।
तेव्यले बज्जिरायुवक तरुगरण तदु विट्टान ॥७७०॥ पर्व-इस प्रकार भनेक शुभलक्षणों से सम्पन्न राजकुमारी रत्नमाला के गुण तथा सुन्दरता की प्रशंसा मुप्तचर दूतों द्वारा सुनकर चक्रायुध राजा ने अपने सुयोग्य राजकुमार बचायुष के साथ सुभविवाह करने का विचार किया। समय पाकर अतितिलक राजा ने अपने दूतों को रत्नमाला के पिता के पास विवाह निश्चित करने के लिये भेज दिया।।७७०॥
तूबर बंडुरंत माद केटदिवेगन सोमान् । पोदुलास कुळलें मैंदन पुनरं विडिर पुगचि तामेन ॥ ट्रियादुनी रुरतदेल्ला मिसदन नेन्न प्पिन्न ।
मोदि नूल वर्गन वेल्वि यागुदि मेरियिर सैवार् ॥७७१॥ मर्च-राबा चक्रायुध के दूतं पृथ्वीतिलक नगर में जाकर अतितिलक राजा के पास माकर विवाह के संबंध में विचार-विमर्श किया। इसे सुनकर राजा प्रतितिलक अंत्यंत हर्ष पूर्वक कहने लगा कि यह तो परम सौभाग्य है कि वचायुष जैसे सुयोग्य राजकुमार के साथ यदि मेरी पुत्री का शुभ विवाह हो जाय तो जगत में विशेष रूप में कीर्ति व मान्यता फैल बायेगी। हे दूत ! जो तुम शुभ संदेश राजा की ओर से हमारे लिये लाये हो, वह हमें मान्य है। मेरी सम्मति अपने राजा से जाकर कहो। तत्पश्चात दूत वापस चक्रपुर नगर में पाकर राजा से सभी शुभ समाचार कहे। यह मंगलमय समाचार सुनते ही राजा ने एक ज्योतिषी को बुलाकर शीघ्र हो विवाह का मुहूर्त निकलवाया और पं. जैनोपाध्य के द्वारा विवाह संस्कार सम्पन्न किया ।॥७७१।।
करि मलर कोरिय नाळे कावल कुमर नेवि । वरि उतरक्के वेळ पिग्यिोडु मगळ्ववं पोर् ॥ कोहि मलर पंचर कंडम वावियं काउमेदि । परिमिस पट्ट विम्बर परिविधि नुगड नाळिल ॥७७२।।
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