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________________ मेस मंदर पुराण [ २३ मै स्त्री हुई। मेरे गर्भ से रत्नायुद्ध का जन्म हुआ। हम दोनों ने तप करके अच्युतकल्प में देव पद प्राप्त किया। तदनंतर मैं गंधिला नाम के देश के अयोध्या नाम के नगर में वीतभय नाम का राजा हुप्रा और तुम विभीषण नाम का केशव पुत्र हुप्रा । तुमको अधिक परिग्रहों की सा से इस नरक में पाना पड़ा और में तप करके लातव कल्प से प्रादित्याभ देव प्रा। मैने अपने अवधिज्ञान से जाना कि तुम इस नरक में हो, इस कारण तुमको धर्मोपदेश सुनाने आया हूँ। तुमको इस नरक के दुखों से डरना नहीं चाहिये। तुम्हारे इस नरक से अधिक दुःख तुम्हारे से नीचे के नरक में रहने वाले नारकियों को है। मैं पूर्वजन्म में राजा था, इतना वैभव वाला था, ऐसा विचार मन में मत लामो और जो अन्य नारकी तुम को कुछ दुख देते हों तो उन पर क्रोध मत करो और यह विचार करो कि यह मेरे अशुभ कर्म का उदय है और सदैव अहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु इन पांच परमेष्ठियों का स्मरण रखो। इसीसे तुम्हारा दुख दूर होगा । इस नरक से मैं कब निकलू ऐसा भी विचार मत करो। यदि इस प्रकार तुम शुभ भावनाएं रखोगे तो अगले भव में उच्चकुल में जन्म लेकर कर्मक्षय करके मोक्ष को प्राप्त करोगे। इस प्रकार जिस तरह तुमको धर्मोपदेश दिया है उसी प्रकार समझ कर उसके अनुसार चलो और यह जिनधर्म ही सुख और शांति देने वाला दयामयी धर्म है। इस प्रकार जो मैंने कहा है उस बात पर विश्वास रखो। तत्पश्चात् उस नारकी जीव ने उस देव को नमस्कार करके कहा कि जैसा आपने कहा है उसी प्रकार मैं चलूगा और इस प्रकार व देव उसको समझा कर स्वर्ग में चला गया। बशवां अध्याय समाप्त ग्यारहवां अध्याय मेरु मोर मंदर का जन्म वर्णन तदनंतर पूर्णचंद्र के जीव ने नरकों के सम्पूर्ण दुःखों को उपशम भाव से सहन किया। जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में अयोध्या का अधिपति श्रीवर्मा राजा था। उसके गर्भ से पूर्णचंद्र के जीव ने नरक से माकर जन्म लिया। युवावस्था होने पर अनेक २ कन्यामों के साथ विवाह हो गया और विषय सुखों को भोगने लगा। इस प्रकार सुख से समय बीतते हुए एक दिन अनंत नाम मुनि नगर में पाए । मुनि को नगर में पाया सुनकर उनके दर्शनार्थ गया और भक्ति पूर्वक नमस्कार करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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