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________________ मेर मंबर पुराल नवां अध्याय पूर्णचंद्र व रामदत्ता देवी की कथा धातकीखंड द्वीप के पूर्व भाग में महा मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा नदी के उत्तरी तट पर गांधिल नाम का देश है। उस देश सम्बन्धी अयोध्या नगर है। उसका अधिपति अर्हदास है। उसकी दो पटरानी थी। जिनका नाम सुव्रता और जिनदत्ता था। वह रत्नमाला का जीव जो अच्युत कल्प में रहता था, सुव्रता रानी के गर्भ में माया। नवमास पूर्ण होने पर पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। उसका नाम वीतभय रखा गया। और जिनदत्ता के गर्भ में रत्नायुध का जीव पाया वह विभीषण नाम का पुत्र उत्पन्न हुमा। वीतभय बलभद्र तथा विभीषण वासुदेव थे, वासुदेव को देखकर प्रतिवासुदेव क्रोधित हो गये और परस्पर में युद्ध छिड़ गया। तब प्रतिवासुदेव ने वासुदेव की सेना को पीछे हटा दिया। तदनंतर वासुदेव ने प्रतिवासुदेव की सेना को युद्ध में जीत लिया। तब प्रतिवासुदेव ने अपने पास रखे हुऐ चक्ररत्न को चलाया। वह चक्ररत्न वासुदेव के तीन प्रदक्षिणा देकर बाई ओर खड़ा हो गया। वासुदेव ने वही रत्नचक्र वापस उन पर छोड़ दिया। तब उस चक्ररत्न ने प्रतिवासुदेव को ही मार दिया। तदनंतर वीतभय और विभीषण दोनों ने उस तीन खंड में रहने वाले सब राजामों को जीतकर वापस अपने नगर से आकर वे सुख से समय व्यतीत करने लगे। कुछ दिन पश्चात् वह विभीषण मर गया । और वीतभय संसार से विरक्त होकर वैराग्य भाव रखते हुए जिनदीक्षा धारण करके समाधिपूर्वक मरण करके लांतवनाम के कल्प में देव हुआ। वहां जाकर अवधिज्ञान से जान लिया कि विभीषण दूसरे नरक में गया है। तब वह वीतभय विभीषण के जीव को सम्बोधन के लिए दूसरे नरक में गया। नवम अध्याय समाप्त । दशम अध्याय मरक में वासुदेव द्वारा नारकी को धर्मोपदेश उस लांतव देव ने दूसरे नरक में जाकर विभीषण के जीव (नारकी) को धर्मोपदेश दिया और पूछा कि हे नारकी जीव ? तुम जानते हो मैं कौन है ? मैं पूर्व जन्म में मादुरी नाम की ब्राह्मण को स्त्री थी उसके तू वारुणो नाम की पुत्री थी। मैं दूसरे जन्म में रामदत्ता देवी हुई और तुम मेरे गर्भ से पूर्णचन्द्र पुत्र हुए और हम दोनों तपश्चरण करके देव हो गये। तदनंतर मैं वहां से चयकर श्रीधर नाम की पुत्री हुई। दोनों ने कापिष्ठ नाम के कल्प में देव होकर वहां से प्रायु पूर्ण करके इस कर्मभूमि में रत्नमाला नाम की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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