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________________ मेह मंदर पुराण [ २८३ इस प्रकार उपरोक्त विषय के अनुसार जीव अनित्य है, तुम्हारे मत के अनुसार जीव शाश्वत नित्य है ऐसा सिद्ध होता है ।।६५२॥ मेवं प्रोटिल बिछंदवत् तुळ्ळि पोल् । वंद पावन योडवन् मायु मेल ॥ मैदु पोन बनलन् मद्रार् कोलो। बंद मोंडिला पाळ् मुत्तिनादने ।।६५३॥ अर्थ-अग्नि से सपे हुए गर्म तवे पर पानी डालने से जिस प्रकार वह पानी तुरन्त ही सूख जाता है, उसी प्रकार जीव अपने परिणाम के अनुसार मर जाता है । यदि ऐसा तुम कहोगे तो कौनसा जीव मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है ।।६५३॥ पावलालनित्तं पिडित्तात् नाम् । पोदि यानयुं भोग वेरिदव ।। रोदु नलगळु मोट्टर केट्ट पिन् । - यादि नानिल यायै निरुत्तु वार् ॥६५४॥ अर्थ-इसलिये आप लोगों के अपने मत के अनुसार कहे जाने वाले सभी विषय संभव नहीं है। इसलिये इन सभी बातों पर तुम्हारे मत के अनुसार विचार करके देखा जाय तो बौद्ध लोग कहने वाले का मत संभवता नहीं। यदि वस्तु क्षण २ में नष्ट होती है । ऐसा कहोगे तो पुनः वही वस्तु कहां से आ जाती है ।।६५४।। नौ बेन सोल्लि नान् सोन्न वन्न । मौवधक्कनत्तिले येळिंदु पोदलाल् ॥ नव्वये नव्वये नविद्रि मल्लदु । मोन्विन यनित्त मेंबार्गळ् मूटिार ॥६५५।। अर्थ-सर्वथा तत्व अनित्य है ऐसा कहने वाले अनित्यवादी से यह पूछते हैं क प्रनित्यवादी साधने वाले मुंह से नमः कहते हैं। पहला अक्षर 'न' यह अनित्य हुमा या नहीं । इस शब्द का नाश हुमा या नहीं? तुम्हारी दृष्टि से वह न शब्द अनित्य हो गया पुनः मः अक्षर कहने से वह भी अनित्य हो गया । उस म अक्षर के उच्चारण करते ही उसका नाश हो गया जब न, म का नाश हो गया तो पुनः नमो शब्द की उत्पत्ति कहां से हो गई । तब हृदय में नमः शब्द का अर्थ कहां से होता है ? ॥६५५।। वासत्तै पोल्वर मेनिन मा मलर् । नासत्तं शेलाव मुन्नन्नु मुट्टि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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