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मेद मंदर पुरारण
सुख दुख प्रादि का फल फिर किस से होय ? अर्थात् नहीं होता है । यदि क्षणिक पक्ष में संतान को कार्य करने वाला कहा जाय तो संतान परमार्थभूत क्षणिक एकांत में संभव नहीं है । एक अन्वयी ज्ञाता द्रव्य ग्रात्म द्रव्य ठहरे। तब संतान सत्य ठहरे सो क्षणिक पक्ष में ऐसा होता नहीं । इसलिये क्षणिक एकांत मत हितकारी नहीं है। परलोक बंध, मोक्ष यदि संभव न हो तो काहे का हितकारी है । जैसा नित्यत्व आदि एकांत है वैसा ही यह है। इसलिए ऐसे मत का परीक्षावान आदर नहीं करता ।
आगे इस क्षणिक एकान्त पक्ष में सत् कार्य बनता नहीं है । जो कहे तो मत में विरोध आवे । अब प्रसत् रूप ही कार्य कहे जिसमें क्या दोष है ? इसके लिये आचार्य प्राप्त मीमांसा में श्लोक ४२ में कहते हैं:
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" यद्यसत् सर्वथा कार्यं तन्मा जनि खपुष्पवत् । मोपादाननियामोऽभून्मां श्वासः कार्यजन्मनि ॥
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जो कार्य है सो सर्वथा असत् उत्पन्न होता है। ऐसा माना जाय तो वह कार्य प्रकाश फूल की तरह मत हो । पुनः उपादान आदि कार्य के उत्पन्न होने को कारण है । जिसका नियम ठहरता नहीं है । फिर यदि उपादान का नियम न ठहरे तब काम के उत्पन्न होने का विश्वास ठहरता नहीं । इस कारण यही कार्य नियम से उत्पन्न होगा । जैसे जौ के पैदा होने के लिए जो बीज ही है ऐसा उपादान कारण का नियम होय तिस काररण ते वही काम उत्पन्न होने का विश्वास ठहरे, सो क्षणिक एकांत पक्ष में असत्कार्य माने तब यह नियम ठहरता नहीं है ।। ६५१ ।।
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बारि योटिल वला करितिट्ट पोर् । पार मोदंगळ् पत्तुं पई ड्रव ॥ तावत्तोड़ मरितरि वैदिडि । नेरि नित्तमो मोट्टिन नातुमे ।। ६५२ ॥
अर्थ - नदी का पानी वेग से बहते समय बगुला किनारे पर बैठ जाता है किंतु उसको दृष्टि पानी के बहाव को ओर न रहकर नदी में रहने वाली मछली की तरफ रहती है, दूसरी तरफ वह दृष्टि नहीं रखता । बगुला की इष्ट वस्तु मछली है । उसको अन्य वस्तु कोई मतलब नहीं रहता । उसी प्रकार संसार में रहने वाला भव्य जीव क्षमाशील, वीर्य ध्यान प्रज्ञा, उपाय दया, बल, ज्ञान, व उपयोग यह दस प्रकार विषय को भली भांति अभ्यास कर मोक्ष की प्राप्ति करने की इच्छा से इन ऊपर कही हुई बातों की ओर ध्यान देकर अन्त में मोक्ष की इच्छा की भावना सहित मरण करके बुद्ध होकर उसी भव में तप करके मोक्ष को जाता है। ऐसा यदि कहते हो तो जीव नित्य है ऐसा मत तुम्हारे से सिद्ध होता है। जीव अनित्य नहीं है, नित्य है ऐसा सिद्ध होता है । अगर प्रनित्य कहते हो तो तुम्हारे मत के अनुसार ही नित्य सिद्ध होता है । इस विषय को दीपंकर बुद्ध नाम की जातक गाथा में लिखा है । मैंने बुद्ध होकर यदि जन्म लिया है तो मुझे क्या करना चाहिये ऐसा विचार कर उपरोक्त दसों बातों पर पारविद्या में परिपूर्ण होकर पुनः दूसरे जन्म में गौतम बुद्ध होकर जन्म लिया ।
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