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________________ २६० ] मेरु मंदर पुराण अर्थ-पूर्व जन्म में वारुणी का जीव स्त्री मरण करके पूर्णचंद्र हुआ था और वह मरण करके पुनः उस श्रीधरा रानी के गर्भ में आकर लडकी उत्पन्न हुई । बढते २ वह कन्या सर्वगुण सम्पन्न हो गई । तब उसका नाम यशोधरा रख दिया। संसार की विचित्रता बलवान है । यह सब मोह की माया है ॥५६॥ अंगयु मडिगळु मलरंद तामरै। कोंगयुं कुळल्गळं कुरुंचे कोंड़ याम् ॥ वेंगयर् पोरव कन्वेय वेंड तोळ । पंकय मलर मिस पावै पावये ॥६००॥ अर्थ-उस यशोधरा का मुख लाल कमल के समान अत्यन्त सुन्दर था। उसके नेत्र हिरणी के नेत्र के समान एवं भृकुटी इन्द्र धनुष के समान थी। इस प्रकार वह कन्या सुशोभित होकर पृथ्वी को शोभित करने लगी ।।६००। मेघरवत्तोडु मिदं पेरोलि । पागर पुरत्तव रिर्रवन् पारोडु ॥ नागर् तं मिडत युंम नडुक्कुं विजंगट । काकरन सूर्या वरुत्तनागुमे ॥६०१॥ अर्थ-वहां मेघ की गर्जना के समान आवाज करने वाली तथा सूर्य के प्रकाश के समान प्रकाशवान, ऐसा भास्कर नामक नगर का अधिपति प्रतापी सूर्यावर्त नाम का राजा राज्य शासन करता था।॥६०१॥ निरैमदि यनय मुक्कुडे नीळलि । निरवन तिरंदडि निरंद सिवयान । पोरिकडम् पुलंगन मेन मिक्क पोल्दिनु । नेरियला नेरिच्चेला नीदिया नवन् ॥६०२॥ अर्थ-वह सूर्यावर्त राजा सूर्य के समान प्रतापी, शत्रु समूह को सदेव परास्त करने वाला, अत्यंत धार्मिक था। देव, शास्र, गुरु में भक्ति रखने वाला, शीलगुण सम्पन्न, चार प्रकार के दानों में हमेशा रत तथा सदैव जीवों पर दया करने वाला, तीन छत्रों के नीचे रहने वाला तथा सदैव भगवान के चरण कमलों की पूजा में रत रहता था। वह धर्मज्ञ तथा पापभीरु भी था॥६.२॥ पाटन मूंड्रान् मल यरसर् तम् वलि । माट्रिय पुयवली मदमंग तन ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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