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मेर मंदर पुराण
- [ २६१ नेट्रिय वडं सुमंवेळुव कोंगये।
याट्र ळि वेळ विया लन्न लैंदिनान् ॥६०३।। अर्थ - उत्साह शक्ति, आलोचना शक्ति, प्रभुत्व शक्ति इन तीनों शक्तियों से युक्त, . विजयार्द्ध पर्वत पर रहने वाला, सब राजाओं को अपने आधीन करने वाला वह सूर्यावर्त राजा अलकापुरी का अधिपति था। उसका श्रीधरा की कूख से जन्म लेने वाली यशोधरा नाम की कन्या के साथ जैन उपाध्यायों के द्वारा विधि पूर्वक पाणिग्रहण संस्कार किया गया और यशोधरा उसकी पटरानी बनी ॥६०३।।
आर्यावर्तत्तुळ लारप्पोलवच । सूयांवर्तनुं तोग तन्नलं ॥. . वारिवर्तत्तुळ ळमिळ दिन् वांगिय ।
तारियान परुगुनाळ शासरत्तिनुळ ॥६०४॥ अर्थ-आर्यावर्त नाम की उत्तम भोगभूमि में रहने वाले मनुष्य के समान यह सूर्यावर्त नाम का राजा अपनी पटरानी यशोधरा के साथ विषयभोग में मग्न हो गया और आनंद पूर्वक समय व्यतीत करने लगा।॥६०४।।
कामरं देवियर वदनत्तामर । तेमरु वंडेन सेंगट शीधर ।। . नामद याने शासरत्तिन् वळियिप ।
पूमरु कुळलि तन् पुदलव नाईनान् ।।६०५॥ अर्थ-सुलक्षण से युक्त, देवांगना के तुल्य, कमलपुष्पवत् सुन्दर वदन वाली यशोधरा थी और कमल को जिस प्रकार भ्रमर सदैव उसकी सुगन्ध के लिये घेरे रहता है, उसी प्रकार पूर्व जन्म में हाथी की पर्याय में सभी हाथियों से घिरा हुअा अशनी कोड नाम के हाथी ने पंचाणवत ग्रहण करने के फल से सहस्रार कल्प में जन्म लिया हुमा वह श्रीधर देव अपनी माय को पूर्ण करके वहां से यशोधरा रानी के गर्भ में आ गया ॥६०५।।
श्रीधर निशोधरै शिरुवनाय मन्निर् । केवमाम तिमिर् केड किरण वेगनाय ॥ मादिरं तन्नयुं वनक्कु विजया।
लोदनो वट्टत्ति नोरुव नाईनान् ॥६०६॥ अर्थ-उस श्रीधर देव का जीव यशोधरा देवी के गर्भ से जन्म लेकर पुत्र उत्पन्न हुआ। उस पुत्र का नामकरण संस्कार करके किरणवेग ऐसा नाम रखा गया। अब वह अपनी विद्या के सामर्थ्य से समुद्र से घिरा हुआ उस पृथ्वी में जन्म लेकर उपमा रहित हो गया॥६.६॥
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