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________________ २५८ ] मेरु मंदर पुराण हरिणी की प्रांख के समान अत्यन्त सुन्दर दीख पडती थीं। वे तरुण स्त्रियां कटाक्ष दृष्टि से जिस मनुष्य की ओर देख लेती थी उसी मनुष्य को अपने नेत्रों के कटाक्ष से वश में कर लिया करती थी ।। ५२ ।। मदि यडंद नेडुड् कोडि माडवर । कदिबन् विजयर् कोनदि वेगनाम् ॥ frfasरंडन नीडिय तोळि नान् । विदिइन् विजै कडंद नेडंद ॥ ५६२॥ अर्थ-उस नगर में आकाश में चंद्र मंडल को स्पर्श करने वाली ऐसी बडी २ ऊंची २ ध्वजाएं थीं । ऐसी ध्वजात्रों से अलंकृत धररणी तिलक नाम का वह नगर था । उस नगर का अधिपति पद्मनिधि के समान सम्पूर्ण पुरुषों की तथा नगर निवासियों तथा याचकों की इच्छा पूरी करने वाला सभी विद्याओं में निपुण प्रतिवेग नाम का राजा था ।। ५६२ ।। विल विकला विळुनि दिवेंद्र यायुवा । मिलक्कन मिया वयु मिरुंद कोंव नाळू || सुलक्कनं यां पेयर् तुनार् गडोळ् वलि । विलक्किय पुयत्तदि वेगन ट्रेविये ।। ५६३|| अर्थ - शत्रु राजाओं के भुजबल को नाश करने की शक्ति रखने वाले उस राजा प्रतिवेग की सर्व प्रकार के गुणों से सम्पन्न जैन धर्म में परायण तथा धर्म में प्रासक्ति रखने वाली सर्व सुन्दर सुलक्षणा नाम की पटरानी थी। यह पटरानी पूर्वजन्म में रामदत्ता का जीव ही यहां प्राकर सूर्य के प्रकाश के समान चमकने वाली महारानी हुई। इस सुलक्षणा पटरानी के गर्भ में मास्कर नाम का देव का जीव प्राया और नव मास पूर्ण होने के बाद श्रीधरा नाम की कन्या उस पटरानी के उत्पन्न हुई ।। ५8३ । Jain Education International rofesन् नोळियळां पार्व तानवळ् । बरु शिलै तिरुनुवन् मामडंदै पार् ॥ ट्रिरुवेन तोड्रिनाळ् शीवरं यदाम् । मरुविय पुरुऴ् वळि बंद नाममें ||५६४॥ कोटू व नाम कुलमल इर् ट्रोड्रिय । by सुलक्कने कनग पाति युऴ् । कर्पग कोडियडु वळरं दु कामदं । पपुंडे मुलेयरं पेळंबु प्रतवे ।। ५६५ ।। अर्थ - प्रतिवेग नाम के कुलपर्वत के समान गंभीर और पतिव्रता श्रेष्ठ लक्षण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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