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मेरु मंदर पुराण . [ २५७ तडियिडु मिडंबेरा बडयुं मानगर् ।
कडलिङ नदिपुगुं काक्षि बागुमे ॥५८८।। अर्थ-उस धरणी तिलक नगर में अधिक से अधिक ऊंचाई में तथा ध्वजामों से युक्त गोपुर थे। और गोपुर के प्रासपास बडी २ गलियां थीं। उस नगर में सुन्दर स्रिय इतनी भीड रहती थी कि जिससे माने जाने में बडी बाधा होती थी। इस प्रकार स्त्रियों व पुरुषों से भरा हुआ वह नगर था। उस गली में आने जाने वाली स्त्रियां तथा पुरुषों के चलने फिरने में ऐसे शब्द होते थे जैसे पर्वत पर से नदी के पानी के गिरने की आवाज होती है। यदि खडा होकर वहां के लोगों के मावागमन को देखा जावे तो ऐसा मालूम होता था कि जैसे नदी के दोनों किनारे बह कर जा रहे हों ॥५८८॥
सुर बुयर् कोरियुड तोंडल काळयर् । नरै विरि मर मलर् नंगे मंगयर् ।। पोरि यिह पुलंगळं भेग भूमिय ।
बरिवन तळि नगर् पोलु मानगर् ॥५८६॥ अर्थ-ऐसे उस महानगर में निवास करने करने वाली तरुण स्त्रियां सर्वगुण सम्पन्न व रूप में सुन्दर, मधुर शब्दों से युक्त एक क्षण में मन्मथ को वश में करने वाली थी। वहां के रहने वाले मनुष्य इष्ट विषय व काम सेवन में यहां के मनुष्यों के समान ही भोग भोगते थे। जैसे महंत भगवान का समवसरण ही यहां उतरा हो ऐसा सदैव वह नगर प्रतीत होता था ॥५८६।।
नरंवि निनोलि नाडग माडुनल् । लरंवे यरने यारोलियाय पिळि ।। सुरुबुनुं मौलि सूदेरि कोदयर् ।
करुवि नन् मोळि युं कब सेय्युमे ।।५६०॥ अर्थ-उस नगर में वीणा के तथा नृत्य करने वाली स्त्रियों की पैजनी के मधर शब्द कान में अत्यन्त मधर सनाई दे रहे थे। अनेक प्रकार के विषय भोग संबंधी अनेक कलापों से स्त्री और पुरुष युक्त थे। ऐसे स्त्री और पुरुष उस नगर में निवास करते थे ।।५९. ।
मळे युन मिन्नन माळिगंयू डुला। मुळेय नार् पुरवत्तुरु पच्चिले। कुळय वांगि विडङ्कनम् पुळ्ळपुग ।
वळलुं कव्वै यमरं बतंरोर् पाल् ॥५६१॥ पर्थ-उस नगर में महलों पर इधर उधर घूमने वाली सुन्दर स्त्रियों को पांसें
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