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________________ १८ ] मेरु मंत्र पुराल दर्शन करके भक्तिपूर्वक स्तुति की। उस समय उस चैत्यालय में हरिचंद्र नाम के चारण ऋद्धि धारी मुनि विराजते थे। उनको देखकर नमस्कार करके उनके पास बैठ गया। और कहा कि हे भगवन् ! धर्म का स्वरूप क्या है ? यह मुझको बताइये । हरिचंद्र मुनिराज ने कहा कि सप्त तत्त्व, षद्रव्य, सप्तभंगी, नय आदि के स्वरूप समझने से तम्हारे कर्मों का क्षय होकर मक्ति प्राप्त हो जायगी। इस धर्म को सुनने के पश्चात् उसने संसार से विरक्त होकर जिन दीक्षा लेकर निरतिचार पूर्वक तपश्चरण करते हुए चारण ऋद्धि को प्राप्त कर लिया। __ वह किरणवेग तपस्या करते हुए कांचनप्रभ नाम की गुफा में रहते थे। तब श्रीधरा व यशोधरा दोनों ने उन महाराज के पास जाकर धर्म का स्वरूप समझा और वापस अपने घर लौट आई। तदनंतर वह महामुनि उस गुफा में आ गये और वहां जाते ही देखा कि सत्यघोष का जीव अजगर जो वहां रहता था पूर्वभव के बैर के कारण इन मुनिराज को उसने निगलना शुरू कर दिया। मुनि महाराज ने अपने ऊपर घोर उपसर्ग आया समझ कर ॐ नमः सिद्धेभ्यः ऐसा बोलने लगे। तब इनकी आवाज़ को सुनकर वे दोनों प्रायिकाएं वापस लौटकर शीघ्र आ गई और मुनिराज के आधे शरीर को अजगर द्वारा निगला हुआ देखकर अवशिष्ट दोनों भुजात्रों को दोनों ने खींचना शुरू किया। परन्तु उस अजगर ने अपने बल से मुनिराज के साथ इन दोनों प्रायिकाओं को खा डाला। ये तीनों मरकर कापिष्ठ नाम के स्वर्ग में उत्पन्न होकर चौदह सागर की आयुष्य वाले देव हो गये । और वह अजगर मरकर चौथे नरक में गया। इसका सारांश यह है कि पाप कार्य को छोड़कर पुण्य कार्य को शक्ति अनुसार पालन करना चाहिए जिससे यह आत्मा संसार में अधिक समय तक भ्रमण न करता रहे । छठा अध्याय समाप्त सप्तम अध्याय जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र सम्बन्धी चक्रपुर नाम का नगर है। उस नगर का राजा अपराजित है। उसकी रानी का नाम वसुन्धरा है। अहमिन्द्र नाम के देव ने स्वर्ग से चलकर अपराजित राजा की रानी वसुन्धरा के गर्भ में जन्म लिया। जन्म लेने के पश्चात् उसका नाम चक्रायुध रखा गया। वह कुमार शस्त्र-शास्त्र आदि अनेक कलाओं में पारंगत हो गया। यौवनावस्था को प्राप्त होने पर उनके पिता ने चित्र माला नाम की राजकन्या के साथ विवाह कर दिया। वह कुमार अपनी स्त्री चित्रमाला सहित विषय भोगों में खूब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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