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मेह मंदर पुराण
को चाहिये कि वे आर्त रौद्र ध्यान छोड़कर धर्मध्यान में लीन होवें। यही परंपरा मोक्ष का मार्ग है और यही कथा का सार है।
पांचवा अध्याय समाप्त
छठा अध्याय
पुन: मध्यलोक में प्राकर सिंहसेन, रामदत्ता व पूर्णचंद द्वारा पूर्वभव के पुण्य के कारण देवगति को प्राप्त होना ।
तदनंतर देव सुख को भोगते हुए उस रामदत्ता का जीव भास्करप्रभ देव के जब आयु के १५ दिन शेष रह गये तब शरीर की व नेत्रों की कांति मलिन हो गई। इससे वह देव डर गया। तब वहां के अन्य २ सांथी देवों ने प्राकर उस जीव को अनित्यादि रूप से संसार का स्वरूप समझाया और इस संबोधन से वह देव अपने हित करने के लिए उद्यत हुआ और धर्मध्यान पूर्वक प्राणों का त्याग किया और मध्य लोक में पाया । जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र के विजयाद्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में धरणी तिलक नाम का नगर था। उस नगर का अधिपति अतिवेग था। उसकी पटरानी का नाम सुलक्षणा था। रामदत्ता का जीव इन दोनों दम्पतियों के गर्भ में प्राकर श्रीधरा नाम की पुत्री हो गई। जब वह पुत्री युवावस्था को प्राप्त हुई तब अलकापुरी के राजा दर्शक के साथ उसका विवाह हो गया था। थोड़े समय बाद वह वैडूर्यप्रभ देव आयु के अवसान पर वहीं से चल कर श्रीधरा के गर्भ में आकर यशोधग नाम की पुत्री हुई। यौवनावस्था प्राप्त होने पर भास्करपुर के सूर्यावर्त्त नाम के विद्याधर अधिपति के साथ उस यशोधरा का विवाह हो गया। तब पूर्वभव में सिंहसेन राजा का जीव श्रीधर देव धर्म ध्यान से आयु पूर्ण करके इस यशोधरा से गर्भ में आ गया। नवमास पूर्ण होने पर किरण वेग नाम का पुत्र हुआ। वह किरणवेग यौवनावस्था को प्राप्त करके अनेक राज कन्यायों के साथ विवाह करके सुख से भोग भोगने लगा।
एक दिन राजा सूर्यावर्त ने अपने मन में संसार का स्वरूप विचारा। वे उस विजयाद्ध पर्वत को छोड़कर वहां से नीचे भूमि पर आये तब वहां एक मुनि चन्द्र नाम के तपस्वी तप कर रहे थे । सूर्यावर्त ने इन्हें नमस्कार करके उनका उपदेश सुना। तत्पश्चात्
से विरक्त होकर अपने स्थान को गये और वहां जाकर अपने पुत्र को राज्य देकर उनने मुनिराज के पास आकर विधिपूर्वक जिन दीक्षा ले ली।
इस बात को सुनकर सूर्यावर्त की पुत्री तथा, उसकी पटरानी दोनों ने गुणवती आर्यिका के पास जाकर आर्यिका दीक्षा धारण की। तदनंतर किरण वेग (सूर्यावर्त के पुत्र) ने वैराग्य प्राप्त किया और जिनेन्द्र भगवान के दर्शनों के लिए विजयाद्ध पर्वत पर स्थित सिद्धायतन कूट के अकृत्रिम चैत्यालय में गया। और वहां सब जिन बिम्बों के
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