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________________ بنقلهمعلمندبندند تردد برنلیدمیلا - هما २४२ ] मेरु मंदर पुराण पागर प्रभयेन्नू विमानत्तु परुधि पोल । पागर प्रभनेन्नुं देवनाय पाव तोंड्रि ।। नागर वंदिरजं विद मूतिय नडुवि इरुंदाळ् । सागरं पत्तोडारु तनक्कु वाळ नाळदामे ॥५३८।। अर्थ-उस महाशुक्र कल्प में भास्कर प्रभा नाम के विमान में सूर्य के प्रकाश के समान प्रकाश होने वाला रामदत्ता माता का जीव भास्कर नाम का देव हुआ। तब वहां पाकर सामान्य देवों ने उस देव को नमस्कार किया। वह सोलह सागर आयु को प्राप्त करने वाला हो गया। प्राचार्य कहते हैं कि: अणुमात्तं व्रतमल्पकालमिरे मुन्न तच्छल प्राप्तियि । प्रणुतक्ष्मापतिपादेनिन्नधिकदि सम्यग्वताचार लक्षणमं शाश्वतवांतु देव पदमं कैवल्यमं को बेनें । देरिणसुत्तुज्जुगिपातने सुखियला रत्नाकरराधोश्वरा ।। अरणमात्र व्रत अल्प काल तक रहने से उसके फल से आगे चलकर पृथ्वी का अधिपति हुआ अर्थात् चक्रवर्ती हुआ। सम्यकदर्शन अणुव्रत तथा महाव्रत व तपश्चरण करने से शाश्वत मोक्ष पद करने की इच्छा करने वाले तथा महाव्रत की रक्षा करने वाले मोक्ष पद पाने के इच्छुक नहीं हैं क्या ? तथा सुखी नहीं है क्या ? अर्थात् वही जीव सुखी है ऐसा मन में विचार किया ॥५३८॥ इरट्टा माइत्तांडिड विट्टिन् नमुद मुन्ना । वोरेट्टां पक्कन् तन्न इडे इडे विटुइतु ॥ मोरिट्टिन पादियाय नरगत्ति लवदि योट्टा। प्रोरेटु गुरणंगळ् वल्लउडबंदु मुळम यरं दान् ॥५३६। मर्थ- इस प्रकार भास्कर देव सोलह हजार वर्ष में एक बार आहार करता था। और पाठ महिने में एक बार श्वास निश्वास लेता था। अपनी अवधि के द्वारा वह देव चौथे नरक तक का हाल जानता था। उसके साथ २ उसको व्रत के प्रताप से अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व आदि आठ प्रकार की ऋद्धियां प्राप्त हो गई। उसका शरीर पांच हाथ प्रमाण था ।।५३६।। मिन्नरि शिलंबि नोस मिळिरुमे कलैइनोस । इन्नरंबि से ईनोस येळंद गीदत्ति नो सै॥ मिन्नुडं किडयि नाद विळंदुला मुळिई नो से । तन्नुळं कवर विन सोल् वीचारत्तोडु नाळाल् ॥५४०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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