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________________ मेरु मंदर पुरारण mass गागरा PRO देव चार नरक तक का हाल जानते है । अनत, प्रारणत, अच्युत स्वर्ग के देव पांचवें नरक का हाल जानते हैं ।। ५०१ । । श्रार दावदं केवच्च मायं दिडु | नोरिल विरुवकु मेळावदाम् ॥ मारिला चव्व सिद्धिइल् वानव । रूरिता प्रदि नाळिगं युट् कोळं ||४०२ || अर्थ - नव ग्रैवेयक पटल के रहने वाले देव छठे नरक तक का हाल जानते हैं । नवानुदिश पंचागुत्तर नामके स्वर्ग के देव सातवें नरक तक का हाल जानते हैं । सर्वार्थसिद्धि नाम के विमान में रहने वाले देव त्रस नाडी में रहने वालों के हालात जानते हैं ।। ५०२।। Jain Education International मिडंडन् मेनियै तडरिल कांडलि । नडैयु मिन् सोलिर सिद इन् मेवलिन् ॥ मडनल्लारिन् वरुं पय नंदुव । रवि लोदियिर् सोन मुन्नं वरु ।।५०३ ॥ अर्थ – सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देव कामभोग मनुष्य के समान करते हैं । सनत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग के देवों के देवियों के स्पर्शन से ही काम वासना की तृप्ति हो जाती है ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लांतव और कापिष्ठ स्वर्ग के देवों की देवियों के देखने से ही कामभोग का लालसा तृप्त होती है । शुक्र, महाशुक्र, शतार सहस्रार नाम के देवों के देवियों के शब्द सुनते ही काम की तृप्ति हो जाती है । आरणत, प्रारणत, आररण, अच्युत स्वर्ग के देवों को स्मरण मात्र से ही तृप्ति हो जाती है ।। ५०३ ।। [ २३१ पल्ल मंदिन मेर् पनिरडांवदै । येल्ले याग विरंडि रंडेरिडु ॥ मल्लनात्वरु केळु मिक्कैम्बत्तैयि । पल्ल मान् देवि येर् पर मायुवे ।। ५०४ ।। अर्थ-उन देवियों के साथ रहने वाली देवियों की आयु ७ पल्य की होती है । सौधर्म कल्प में रहने वाले देवों की आयु ५ पल्य की होती है। सौधर्म स्वर्ग से ऊपर रहने वाली देवियों की आयु एक एक पल्य बढ़ती जाती है । प्रणत, प्रारणत, आरण स्वर्ग में रहने वाले देवों के साथ की देवियों की प्रायु ७ पत्य होतो है । अन्त में रहने वाले अच्युत स्वग की देवियों की श्रायु ५ पल्य की होती है ।। ५०४ ।। मोंगमिन् मुनिवन दिवम् पोलवे । तोगये यनेयवर तोडच इंड्रिये ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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