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२३. ]
मेरु मंदर पुराण
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कडर् कोराइर तांडु कडंदमिर । । तुडंद्र उपसि तीर मनत्त ना ॥ कडधै नाळ् पदिनेंदु कळित्त इर् । तडक्क मिल्लइन् पत्तर देवरे ॥४६६॥
अर्थ-एक सागर आयु वाले देवों को एक हजार वर्ष के बाद भूख लगती है । वह भूख मानसिक आहार से तृप्त होती है। एक सागर आयु वाले देव १५ दिन में एक बार श्वासोच्छवास लेते हैं। और इन्द्रिय विषयभोग का भी अनुभव मनुष्य के समान करते हैं।
॥४६ ॥ देवों के शरीर की ऊंचाई
येळ मुळं मुदर् केळर वोळंदिडे । योळि मुळङ् कर्पदुच्चिइन् मूंड्रै ॥ विळु मुळं मरयेदुडन वीळं दुमे । लुळि मुळं मोड्नुत्तर तोकमे ॥५००॥
अर्थ-सौधर्म, ईशान स्वर्ग के देवों के शरीर की ऊंचाई ७ हाथ। सनत्कुमार माहेन्द्र पटल के देवों की ऊंचाई ६॥ हाथ । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर देवों की ६ हाथ ऊंचाई । लांतव कापिष्ठ कल्प के देवों की ।। हाथ। शुक्र महाशुक्र देवों की ५ हाथ । शतार, सहस्रार स्वर्ग में रहने वाले देवों के शरीर की ऊंचाई ४॥ हाथ । पारणत, प्रागत स्वर्ग के देवों की ४ हाथ । पारण व अच्युत स्वर्ग के देवों की ऊंचाई ३॥ हाथ होती है। हेट्ठिम अवेयक के हेट्टिम मज्झिम उवरिम ऐसे तोनों विमानों के देवों के शरीर की ऊंचाई २५ हाथ । नवानुदिश कल्प के देवों की ऊंचाई १ हाथ । मध्यम अवेयक के हेट्ठिम मज्झिम उवरिम् विमानों में २ हाथ है। उवरिम अवेयक के हेट्टिम मज्झिम उवरिम विमानों में १॥ हाथ है। उवरिम ग्रेवेयेक स्वर्ग के देवों की ऊंचाई २ हाथ । पंचारगुत्तर पटल स्वर्ग के देवों की ऊंचाई १ हाथ । इस प्रकार देवों के शरीर की ऊंचाई समझना चाहिये ।।५००।
सोद मीशानर तर मेलिरुवर तम् । मोदि मन्नोंड्रि रंडम मुरैयुरु॥ नीदिया निलंकीळ मूर. नाळेदा ।
लोदियाल मेल मुन्नाल वरुनर् वेर ॥५०१॥ अर्थ-सौधर्म ईशान स्वर्ग के देव अपनी २ अवधि से तीसरे नरक तक का हाल जानते हैं। सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के देव अपने अवधिज्ञान द्वारा दूसरे नरक के हाल . जानते हैं। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के देव तथा लांतव, कापिष्ठ पटल के देव अवधि से तीसरे सातवें नरक तक का हाल जानते हैं। शुक्र, महाशुक्र शतार व सहस्रार यह चार प्रकार के स्वर्ग के
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