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मेरु मंदर पुराण
. [ २२६ रोप्पिलाद विबत्त कुळित्तन ।
नेप्पडि तुरकत्तियल डि येल ॥४६६॥ अर्थ- इस प्रकार श्रीधर देव अत्यन्त भक्ति पूर्वक पूजा ध्यान करने के पश्चात् वहां से रवाना होकर अपने निवास स्थान पर प्राया। श्रीधर के अपने स्थान पर पाते सुशोभित होकर जैसे सुन्दर २ स्त्रियां पाती हैं उसी प्रकार वहां देवांगना आई। तब श्रीधर देव, देवांगना के साथ हास्य विनोद आदि में महान मग्न हुमा । उस मग्न होने का विवरण करना अशक्य है ।।४६६||
देवों के निवास स्थान के पटलों का वर्णन वंडिन मेल् वैयित्त मुप्पोळ् नांगिरन । दोडिन मेलोंड़, मूंड. मूंडोंबुदु ॥ बंडू, मेलोंड, मान तुर कप्पुर।
निड़ मेलुर कोळ् निड़ नीवियाल ॥४६७।। . अर्थ-स्वर्ग लोक के पटल-क्रम से सौधर्म, ईशान कल्प में ३२ पटल हैं । सनतकूमार, माहेन्द्र देवों के स्थान में ७ पटल हैं। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर देवों के स्थान में ४ पटल हैं। लांतव, कापिष्ठ कल्प में दो पटल हैं । शुक्र महाशुक्र कल्प में एक पटल है। शतार सहस्रार में एक पटल है। प्रानत, प्राणत कल्प में दो पटल हैं। प्रारण, अच्युत कल्प में ३ पटल हैं। नववेयक स्वर्ग में ६ पटल हैं । नवानुदिश में एक पटल है। पंचानुत्तर में एक पटल है । इस प्रकार सौधर्म, ईशान कल्पों में पटलों की संख्या है ।।४६७।।
प्रायु का प्रमारण इरंदु मेळुनीरेंदु नीरेळुमा। ईरडु मेर्सेडि रुपत्ति रंडैद ।। तिरंड वट्रिन मेलोंड, सेंड्रायुग ।
मुरंडेळ कडन् मुप्पत्त मूड मे ॥४९॥ अर्थ-सौधर्म ईशान देव की आयु २ सागर । सनत्कुमार माहेन्द्र देव की ७ सागर । ब्रह्मा, ब्रह्मोत्तर देवों की १० सागर । लांतव, कापिष्ठ देवों की आयु १६ सागर । शुक, महा
पटल के देवों की आयु १६ सागर । शतार सहस्रार देवों की १८ सागर । प्राणत, प्राणत देवों की आयु २० सागर । पारण व अच्युत कल्प के देवों की आयु २२ सागर । नववेयेक कल्प के देवों की २३ से ३१ सागर । नवानुदिश में रहने वाले की एक एक सागर क्रम से बढ़ती जाती है। अधिक से अधिक ३३ सागर की आयु होती है। नवानुदिश में रहने वाले जीवों की प्राय ३२ सागर होती है। पंचानुत्तरस्वर्ग के देवों की प्रायु ३३ सागर है । इस प्रकार उपरोक्त प्रायु उत्कृष्ट प्रायु है ।।४६८।।
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