________________
॥ पंचम अधिकार ॥
(विद्युईटा, रामदत्ता, पूर्णचन्द्र व सिंहसेन का स्वर्गवास जाना)
वासनिड़ राद सोल मळेयेन मदुकळ पैदु । मसुतेन मुळंग मंजै मुगिलन वगवि मुत्तिन ।। रूसला मलंगं लार् पोट्रोडंगीय नडंगळोवाक् ।
कोषल येव तुंडी कुवलयं पुगडु नाडे ॥४५४॥ अर्थ-अत्यंत सुगन्ध से भरे हुए पुष्पों के वन में जिस प्रकार खिले हुए पुश्प के अन्दर भ्रमर मग्न होकर सुगध रस का रसास्वादान करता उडता रहता है और उन भ्रमरों के अत्यन्त मधुर शब्द सुनकर मयूर आदि प्रानन्द से नृत्य करते हैं तथा सुन्दर स्त्रियां जिम प्रकार प्रानन्द पूर्वक नृत्य करती हैं ऐसा सभी लोगों के द्वारा प्रशंसनीय महा रमणोक कौशल नाम का देश था। उस सर्व सम्पत्ति से युक्त प्रसिद्ध कौशल देश में तिलक रूप के समान रहने वाला तथा वहां के अच्छे २ गोपुरों से युक्त महल, अनेक पंडित विद्वानों से युक्त, बुद्ध ब्राह्मणों से भरपूर वहां वृद्ध नाम का नाम था । उस ग्राम में मृगायन नाम का अति सुन्दर क्षमा धारण करने वाला एक ब्राह्मण रहता था ।।४।४।।
तिरुत्तगु नाडि दर्षात तिलद माय तिगळं डुं सेंड्रार्। वरुत्तीर माड मदर मरैयव हरैयुमांड। विरुत्त नगिरामन् तन्नुळ् मिरुगायन नेड, मिक्का ।
नोरुत्तनं कुळनांति युरुव कोंड नय्य निरान् ॥४५॥ अर्थ-अत्यन्त सुन्दर मृग के समान चालवाली, गुणवान मदुरा नाम की उनकी स्त्री थी । जैसे नख व अंगुली एक साथ ही रहते हैं वैसे ही वे दोनों दम्पत्ति साथ २ रहते थे। उस मदुरा की दांतों की पंक्ति अनार के दानों के समान थी तथा होठ लाल परवल के समान युर्ख थे। उनकी आंखें हरिणी की पाखों के समान और भृकुटी धनुष के समान थी। इन दोनों के सुलक्षण वाली एक वारुणी नाम की कन्या थी ।।४५५॥
प्रदिर् पड नडत्तलिल्ला ळवन् मनकिळत्ति यन् सोल। मदुरै येनं डोरैक पट्टाळ् मगळं वारुरिणया मुत्तिन् । कदिर् नगै करुन् कटौवाय काल् परं देछंदु पोन्निन् ।
पिदिर् परंदिरुद कौंगै पिनयना लोरुत्ति यानाळ् ॥४५६।। अर्थ-जिस प्रकार सूर्यास्त होते ही कमल निस्तेज हो जाते हैं, उसी प्रकार कारण पाकर
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org |