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२१२ ]
मेरु मंदर पुराण येडुत्त ड नाट्रि वार् पोन् ट्रिदत्तै ययिर् कुमाकू।
वडुप्परि दिसून माधव नुरेक्क कुट्रान् ॥४५३॥ अर्थ-वे मुनि सम्यक्त्व युक्त सब जीवों में दया भाव रखने वाले पक्षपात रहित जीवों को कल्याण का मार्ग बताने वाले अठारह दोष रहित अहंत भगवान के वचनों को कहने की सामर्थ्य रखने वाले थे। उन मुनिराज ने तब पूर्णचन्द्र के पूर्वभव का वृत्तांत कहना प्रारंभ किया ॥४५३३॥
इस प्रकार पूर्णचन्द्र का राज्य परिपालन का विवेचन करने वाला चौथा अधिकार समाप्त हुआ।
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