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मेह मंदर पुराण
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मणिन् मेल महिंद सेल्व मेल्वर । वेणि नी पुष्णिय मोंड संगन ॥ पुनियन मेल पट्टवेल पोल वच्चोले ।
येन्निडा विगळं दव नेळंदु पोइनान् ।।४५०।। अर्थ-यह सभी राज्य वैभव आदि पुण्य के प्रताप से प्राप्त होते हैं । यदि तुम पागे चलकर इससे भी अधिक संपत्ति वैभव को प्राप्त करने को इच्छा रखते हो तो व्रत अनुष्ठान प्रादि धारण करो और उन ही के अनुसार तुमको नियम पूर्वक चलना चाहिये । और शक्ति के अनुसार व्रत, पूजा, उद्यापन करना चाहिये । इस प्रकार मैंने पूर्णचंद्र को समझाया और धर्म मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। इन बातों को सुनकर पूर्णचन्द्र को जिस प्रकार बिच्छू काटने से वेदना होती है उसी प्रकार मेरा उपदेश उनको बुरा लगा और मेरी बात को न मानकर तिरस्कार किया और वह उठकर चला गया ।। ४५०।।
पुलंगन मेल पुरिवळ पोरगळोंबिये। विलंगु पेलि यवन वींदु पोगुमो । इलंगु शेबोन नेरलिरैव नल्लरत् । तलंगल वेळानव नडयु मोसोलाय ॥४५१॥
मर्थ-वह पूर्णचन्द्र पंचेंद्रिय सुख में मग्न होकर तिर्यंच गति में पडकर नाश को प्राप्त होगा। इनका जीवन सुधरना अत्यंत कठिन है । मैंने ऐसा ही समझा है । अतः वीतराग भगवंत के द्वारा कहे हुए धर्म को वह स्वीकार करेगा या नहीं अथवा पशु के समान ही खा पीकर व्यर्थ ही अपने जीवन को बिताएगा? इस संबंध में प्राप कहें। रामदत्ता आर्यिका के वचनों को सुनकर सिंहचन्द्र मुनि अवधिज्ञान व मनःपर्यय ज्ञान द्वारा जानकर कहने लगे
॥४५१॥ मादवि युरन्त बेल्ला मादवन मनत्तै नोकुं । पोदि ळनरं वत्री मुरवलन पुरिदु कोळ्ळं ॥ यादु नी कवल वेंडा मदनुक्के येतुबाग ।
मोदु मिक्कदय केटु नी यवर कुरक्क वेडान् ॥४५२।। अर्थ-है माता ! सुनो ! जैन धर्म को पूर्णचंद्र अवश्य ग्रहण करेगा। इसके बारे में कोई संदेह मत करो। उसको सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी। किस कारण से उसको सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी उसको दृष्टांत द्वारा समझाता हूं ॥४५२।।
प्रडकरी पोदि दुइर्कनरुळि नैयूरियारि । तोडक्कयु मुडिव मोत्तु तोडुत्त दोर् मपमै सन्न ।।
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