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मेरु मंदर पुराण
वह मृगायन ब्राह्मण दुख से पीडित होकर मरण को प्राप्त हुआ। वह मदुरा अपने पति के मर जाने से महान् दुखी हुई। उस मृगायन नामक ब्राह्मण ने मरकर अयोध्या में प्रतिबल नामक राजा की पटरानी सुमति के गर्भ में जाकर पुत्री रूप में जन्म लिया ॥४५६॥
कदिर् मरे पुळुदिर् कांड कमलमुं पोल् । मदुरैयुं मगळु वाड मरव्यवन् मरित्त पोगि। यदिर् वरु पिरवि इल्लारियरा वयोद्दि याळ । मति बलन दनक्कु देवि सुमातिक्कुमरिवे यानान् ॥४५७॥ इरनिय बदियेबाळ पेरिळमईलनय सायल । वरिशिले मुरुवच्यौवाय वल्लिदान वळर द पिन्न ।। तारणिमे लरस रिल्लाम तैय्यल. तरुग वेन्न ।
सुरमै नाडुडेय तोंडर रिन् पुयम् तुन्नु वित्तार ॥४५॥ अर्थ-वह कन्या शनैः २ बडी होने लगी और बढते २ मोर के इधर उधर फुदकने के समान किशोर अवस्था में पाई। उसकी भृकुटी धनुष के समान, आंखें कमल के पत्ते के समान दीखने लगी। उस कन्या का नाम हिरणवती रखा गया। उसकी तरुणावस्था होने .पर उसके सौंदर्य व रूप को देखकर अनेक राजकुमार उसके साथ लग्न करने को प्राये। तदनंतर अवसर पाकर सुरम्य देश के अधिपति पूर्णचन्द्र के साथ उसका विवाह संस्कार कर दिया गया ॥४७॥४५८।।
पोदन पुरत्त वेदन पूरचंदिर- तोगे । मादनं पुनरंदु वंद विवत्त मयंगु नाळुट् ।। कादलान मधुरेयेंद कावलन ट्रेवितन बान् । मावराळुरुत्ति यानान मद्रवनी कंडाये ॥४५॥
अर्थ-उस सुरम्य देश को पोदनपुर भी कहते हैं । विवाह के पश्चात् वह पूर्णचंद्र अपनी रानी के साथ विषय भोगों में सदा लीन रहता था। कालवश उस ब्राह्मण मृगायन की स्त्री मदुरा मर कर पूर्णचन्द्र की स्त्री हिरणवती के गर्भ में आकर कन्या उत्पन्न हुई। वह जीव कोनसा है । यदि तू प्रश्न करेगी तो वह जीव तू ही है ।।४५६॥
अरु तव नरुळि नालप्प भदिर भित्तिरंदान् । ट्रिरु दिय गुरगत्त निन् पाल् शीय चंदिर निडानेन् ।। वरुदु नुन्निड ईनाळोवारुणि वंदुन् कादर । पोदिय पुदल्व नाय पूरचंदिर नडानाळ ॥४६०॥
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