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मेरु मंदर पुराण
करने से आपको कोई लाभ नहीं होगा। मेरा पति मर गया। इसका विचार करने से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि इसी प्रकार भव भवांतरों में कई २ कई वार गजा हुए होंगे और संयोग वियोग अब तक होता चला ग्रा रहा है। यदि उन सब का दम्ब करोगे तो कितना महान असह्य दुख होगा, इसका विचार करो। परम्परा से सत्पुरुषों द्वारा कही हुई बातों की याद करो। आप स्वयं ज्ञानी हो सब जानती हो । अव व्यर्थ ही प्रापको शोक करना उचित नहीं। पाप शोक करना छोड दो इस प्रकार उपचार की बातों को कहकर रामदत्ता रानी को शांत किया ।।३८६।।
तेरिनाळ मयंदर तम्नै तरुगेन चप्प नोंद । वेरु पोनडंदु वंदागिरंजि निडवर नोकि ॥ पेरिलेनुं मैचूटि यरसने पिरिदे नेन्न । वारिळि वरयै पोल वोळ दडि तोळ दु वीळं दार ।।३६०।।
अर्थ-तदनंतर उस रामदत्ता रानी ने अपने दोनों पुत्र सिंहचंद्र व पूर्णचन्द्र को दामी द्वारा बुलवाया। उन दोनों ने आते ही माता के चरणों में नमस्कार किया। रामदना देवी अपने दोनों पुत्रों से कहने लगी कि पुत्रों ! हमने पूर्व भव में अच्छे पुण्यों का संपादन नहीं किया इसलिये आपके पिता के हाथ से तुम्हारा राज्याभिषेक न हो सका और वे राज्याभिषेक किये बिना ही संसार से बिदा हो गये। इस बात को सुनकर दोनों पुत्र शोकाकुल होकर चरणों में गिर पडे ।।३६०॥
तिरुवनमाळवर तेट्रि शीय चंदिरने नोकि । मरुगुला मगडं सूटि मन्मुळुदाळ्ग वेंड, ॥ पोरुविला ळदनिर् पिन्नै पूर चंदिर नैनोकि ।
यरशिळंङ कुमर नायनी यमरं दिनि रिक वडाइळ ॥३६॥ प्रथं–तत्पश्चात् रामदत्ता देवी अपने सिंहचन्द्र और पूर्णचन्द्र दोनों कुमारों को धैर्य देते हुए कहने लगी कि हे कुमारो! तुम दोनों को अपने राज्य की जिस प्रकार तुम्हारे पिता राज्य का शासन करते थे उसी प्रकार अब सम्हाल करना चाहिये। ऐसा आशीर्वाद देती हुई प्राज्ञा दो कि सिंहचन्द्र का राज्याभिषेक करो और पूर्णचन्द्र को युवराज पद देओ ॥३६॥
इदिर विभवं तन्न इरु वगियिर सैदु मयिद । रंदरं पिरिदोंड़े डि ईबत्त ळळं, नाळुळ ॥ शिदुर कळित्त शीय शेनन ट्रन वार्ते केटु ।
वंदनर शांतिरन्य मदियेबा तुरंद मादर् ॥३६२॥ अर्थ-राजमाता की आज्ञा के अनुसार सिंहचन्द्र का राज्याभिषेक करके राज्यपद
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