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मेरु मंदर पुराण
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गरुड नायवन् कालिली कटकेलाम् । गरुड दंड नेबान नक्कनतिले ।। मरुवि मंदिर मोदवु मन्ननुक् ।
किरुळ परंदुई रेगिय देगलुं ॥३७६॥ अर्थ-पांव रहित सो को गरुड के समान रखने वाला एक गारुडी (कालबेल्या) राजमहल में आ गया और उसने गरुड मंत्र का जाप्य करना प्रारम्भ किया। तब जितने सर्प थे वे सब सामने प्राकर इकट्ठ हो गये। परन्तु वह भयंकर काटने वाला सर्प वहां नहीं पाया। इतने में राजा सिंहसेन का मरण हो गया ॥३७६।।
मैयलुट्रवन् मदिर मोंडिनाल । नेय्योळिक्कि नेरुप्प येरित्तिडा ॥ पयन पननाग मेला मळत् । तुय्यवु नुयक्कोंड रे शंगिड्रेन ॥३८०॥
अर्थ-सिंहसेन राजा की मृत्यु होते ही उस गारुडी ने घृत की आहूति से एक यज्ञ प्रारंभ किया । और मंत्र के द्वारा पाहूति के प्रभाव से सारे सर्पो को बुलाया। तब सारे सर्प इकट्रे हो गये। उन सभी सर्यों को देखकर वह गारुडी कहने लगा कि हे सर्पो ! यदि तुम सुख से जीना चाहते हो तो जो बात मैं आपको कहूं उसको स्वीकार करना पडेगा ॥३८०॥
कुट मिल्लवर् मट्रिन् निरुप्पिनै । युट्र पोदिदं नोरिने योट्टिडं । कुट मिल्लवर् पोनडुवन् ड्रेनि । लिट्र तुम्नुईर येन् केयीलेंडनेन् ॥३८१॥
अर्थ---उस गारुडी ने उन सर्पो से कहा कि यदि तुमने इस राजा को नहीं काटा है और निर्दोष हो तो तुम इस हवन कुण्ड में कूद जानो। यह सब पानी २ हो जायेगा। सों ने गारुडी को यह बात सुनी और गारुडी ने यह बात और कही कि यदि तुमने मेरी बात सुनकर उसे न मानी तो मेरे हाथ से तुम्हारा मरण होगा ॥३८१।।
अंजि मट्व नान इरैदिडा। नंजु तारिग नन्निन तोयिनै ।। पुंजु पूम पौगै पुक्कन पोलवे ।
मुंजु पोइन वंडोळियामये ॥३८२॥ अर्थ-गारुडी की बात को सुनकर वे सभी सर्प प्रत्यन्त भयभीत होकर उसके कहने
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