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मेह मंदर पुराण
को मान लिया और जिस प्रकार पानी से भरे हुए तालाब में मछली कूद पडती है, उसी प्रकार सारे सर्प उस हवन कुण्ड में कूद पडे और निर्दोष होने के कारण उस हवन कुण्ड में पानी २ हो गया और सारे सर्प पानी से निकल कर बाहर आ गये । और तत्पश्चात् प्राज्ञा लेकर अपने २ स्थान को चले गये ॥३८२॥
बंद कंदनन् मटन नेरिप्पिन। निड.पुक्किड नीरदु वायदु ॥ शेड. काळ वलत्तिलती मय्या ।
लंड. लोब शमरम दाइनाय ।।३८३॥ अर्थ-उस राजा सिंहसेन को काटने वाले अंगद नाम के सर्प को भी गारुडी ने मंत्र विद्या द्वारा बलवाया और सों के प्रनसार उसने भी वन कण्ड में प्रवेश किया। कुण्ड में प्रवेश करते ही जिस प्रकार अग्नि में समिध अर्थात् लकडी डालते ही वह लकडी जल जाती है उसी प्रकार वह सर्प तत्काल ही जलकर भस्म हो गया । तदनन्तर अगद नाम का सर्प जो शिवभूति का जीव था वह प्रार्तध्यान से मरकर तीव्र पाप कर्म का बंध करके काल नाम के वन में प्रतिलोभ से वह चमरी नाम का मृग हो गया ।। ८.३।।
प्रायु किळयुं मरसु मेल्लाम । माय मेंबवन् पोल मरित्तिडा॥ शीय सेन- तीविन वन्मया। लाईनन् सल्लकी बनत्तानये ॥३८४॥
अर्थ-उस सुनील सिंहसेन राजा ने इस लोक में पूर्व जन्म में किये हुए पुण्य के उदय से प्राप्त स्त्री, भंडार, शयन, वाहन, रथ, पैदल मादि र सर्व साम्राज्य को अनित्य समझ कर तथा जगत को अनित्य बताते हुए उसको ऐसे त्याग दिया जैसे कोई शरीर में से प्राण छोड़ना है। उसी प्रकार वह इस शरीर को छोड देता है। सर्प के काटते हो उसके तीव्र विष द्वारा मरकर उस राजा के जीव ने सल्लकी नाम के वन में जाकर हाथी की पर्याय धारण की।
। ३८४।। प्रसनी कोड मेनुं पेय रायवन् । कसनि संदु कडातयल यानय ।। विसनी यापिडी सूळविलंगन मे।
लसन मिगुव दाग वमरं वनन् ॥३८५॥ अर्थ-इस प्रकार हाथी की पर्याय धारण किया हुमा सिंहसेन राजा का जीव प्रसनी खोड' नाम से प्रसिद्ध होकर वह हाथी उस सल्लकी नाम के जंगल में जितने हाधी थे उन सन हाथियों में प्रधान होकर सुख पूर्वक काल व्यतीत करता था।
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