SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ ] मेरु मंदर पुराण सम्यकदर्शन है। यह सम्यकदर्शन ही मोक्ष को देने वाला है । सम्यकदर्शन माठ मद, तीन मूढता, छह अनायतन इनसे रहित तथा शंकादि पाठ दोषों से रहित होकर अहंत भगवान द्वारा कहे हुए मार्ग पर श्रद्धान करना-चलना प्रादि व्यवहार सम्यक्दर्शन है ।।३५।। पेरिय कोल पोयिकळव विरमनयि मोरवल् । पोळ् वरदल मत्त मधु पुलसुनाळ नीङ्गल ॥ पेरियदिस दण्डमिरु भोग व दाडल् । मरीयिय सिक्के नान्गुमिव मनयत्तार शीलं ॥३५६॥ अर्थ-त्रस जीवों की हिंसा; असत्य बचन, चोरी, परस्त्री और परिग्रह-कांक्षा इन पांचों पापों को एक देश त्याग करना इसका नाम पांच अणुव्रत है । और मद्य, मांस मधु को नहीं खाना, दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदंडवत, इन तीन गुणवतों को और सामायिक, प्रोषधीपवास,भोगोपभोग परिमाण और अतिथिसंविभाग यह चारों शिक्षा व्रतों को मिलाकर धावक के १२ व्रत होते हैं। इस प्रकार ग्रहस्थ के द्वारा आचरण करने को शीलाचार (श्रावकाचार) व्रत कहते हैं । और पंच व्रतों को पूर्ण रूप से पालन करने को मुनिव्रत कहते हैं। इस प्रकार उन वरधर्म मुनिराज ने भद्रमित्र मंत्री को उपदेश दिया ॥३५६॥ इस प्रकार भद्रमित्र मुनिराज द्वारा उपदेश देने वाला तीसरा अध्याय समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy