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________________ मेर मंदर पुराण [ १६६ अंदनन् मिलन ट्रन्न यवन पद बमच्चनाकि । मंदिरं पोल निड़, मण्णिन तांगु मन्नो ॥३४॥ अर्थ-तदनंतर बह राजा शिवभूति मंत्री को कपटाचार मायाचार से चोरी करते हए बरे कार्य करने से मंत्री पद से हटा कर दूसरे को मंत्री पद देने का विचार करके एक बरिणक पुत्र को मंत्री पद दे दिया और अपना राज्य शासन सुख से करने लगा ॥३४॥ तिरंशेरिविलंगु माळि पडिमन्नन् ट्रेवियोडु । मुरै शेरिदिलंगुस कीति युवगै नोड शंवन् । वर शेरिदिलंगुस तिडोळ् वनिगन मदोरु नाळ वाडा। विर शेरिदिलंग वनं सेंड, विरगिर पुक्कान् ॥३४२।। अर्थ-तदनंतर वह सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन अपनी रामदत्ता देवी नाम की पटरानी सहित अत्यंत सुख से समय व्यतीत कर रहे थे । उस समय महा मेरु पर्वत के समान गंभीर धैर्यशाली भद्रमित्र वणिक एक दिन सुख पूर्वक भ्रमण करने के लिए अत्यंत सुगंधित पुष्पों से युक्त प्रतिंग नाम के वन में पहुंचा ।।३४२।। विमाम गंवार मेन्तुं विलंगल इलंगवेरि। यमलमाइलंगुम सिंदै येरुत्तवन् वरदन माविन् । कमल माइलंगुं पांव कैतोळुदिरंजि वाति । तिमिरमां विनगडीर तिरुवर मरुळ्ग वेडान ॥३४३॥ मर्ष-उस सघन वन में रहने वाले विमल गंधर्व नाम के पर्वत की चोटी पर चढकर इधर उधर देखते समय वहां वरधर्म नाम के एक महान तपस्वी मुनी को उस पर्वत पर तपस्या करते देखा । उनको देखकर उनके पास जाकर भद्रमित्र ने साष्टांग नमस्कार करके उनकी स्तुति की, और सामने बैठकर प्रज्ञान वश मेरे द्वारा किए गए कर्मों का नाश हो जाने हेतु कुछ गुरु मुख से उपदेश सुनने का विचार करके अत्यंत निर्मलतपस्वी वरधर्म नाम के मुनि महाराज से प्रार्थना की:-भगवन् मैं अज्ञानी हूँ-सच्चा धर्म के मर्म को मैं नहीं जानता। मुझे जैन धर्म का मर्म बतलाइये, ऐसे प्रार्थना की ।।३४३।। परिवु नाक्षि कांति शांति नल्लडक्क मैंदु । पोरिगळिर् शेरिवु गुत्ति समितियं पोरु वि यास ॥ बरुविय मनत्त वंडम् कारवं शन्न वींद। उरुतव नुरैक लुद्रानुवंद वन् केळ्क लुट्रान् ॥३४४॥ अर्थ-इस प्रकार वह मुनिराज इस भद्रमित्र की प्रार्थना को सुनकर कहने लगे कि हे भव्य प्राणी ! सुनो-सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र के प्रति समान परिणाम रखना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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