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________________ and-~-- मेरु मंदर पुराण [ १६७ दो प्रकार की होती है। कार्य चोरी व कारण चोरी । अपने पास कितनी ही संपत्ति रहने पर भी दूसरे का द्रव्य लेना, मायाचार से अन्य का धन लेना, दरिद्रता आने से चोरी करना यह सभी कारण चोरी है । ३३४॥ ईयल्बि नाङ कळवि नार् कट किनिय वान शैग योंड । मुयलुरु मनत्तरागि वांगु व निरैय्य वांगि ॥ कुयलराय कोडुप्प वेल्लाम कुरैयवे कोडुत्तलागु। मुयलुरा रिवै शैयादे योरु पगलोळिय मेलुं ॥३३॥ अर्थ-कार्य चोर:-इसका यह अर्थ है कि कार्य चोरी करने वाले मायाचार से दूसरे के माल को लेते समय अधिक लेना, देते समय कम देना, हमेशा अन्याय द्वारा धन सम्पन्न करना, अन्य का माल चोर लेना आदि यह कार्य चोरी कहलाती है ।।३३५।। मीन् शंड नेरिय पोलुमं विरुविनार वेळकयादि । तान् चंद्रमनत्त मळ्ळर् तास पोरुळदनुक्काग ।। कान चंद्रनेरि पिन मंडिर् सुरु गैइर् कळवु नलिन । कून कोंडु कोळ्ळ कोळ्ळल् कारण कळवुदाने ॥३३६॥ अर्थ-तीव्र परिग्रह की लालसा करने वाले मनुष्य तृष्णा के द्वारा संपत्ति का उपार्जन करने के लिए जिस प्रकार मछली पानी में जाती है उसके जाने के रास्ते का पता नहीं चलता, उसी प्रकार चोर शास्त्र में चोर प्रयोग की विवेचना किए हुए के अनुसार प्रतिश्रमोजनम् निद्रोत्पादनम्, तालोद्धाटनम् ऐसे चोर शास्त्र के विज्ञान के प्रायुध के प्रयोग से दूसरे की संपत्ति को अपहरण करना, ताला तोडना, उसको मूछित कर देना, एडा लगाना मादि २ के प्रयोग द्वारा चोरी करना, यह सब कारण चोर प्रयोग कहलाते हैं ॥३३६।। कोरुळिनै पोलुं शोति तन्नोडुं पुगळे पोकुं । अरुळिनै पोकुं सुद्रम तन्नोडु वायु पोकुं॥ पेरुमैयै पोकुं पेरुत्तन्नोडु पिरप्पै पोकं । तिरुविनै पोकुं तेट्रन तन्नोडु शिरप्पै पोकं ॥३३७॥ अर्थ-"तीरोटु उडमइ उरुही पंडु पोगुम" इस नीति के अनुसार चोरी के द्वारा प्राई हुई संपत्ति थोड़े समय में ही नष्ट हो जाती है, चोर प्रयोग करने से उसको यश कीर्ति का नाश होता है और भगवंत जिनेश का कहा हा धर्म का भी इस कार्य करने से नाश होता है। आगे के लिए दुर्गति का बंध कर लेता है। धैर्य, ऐश्वर्य आदि सभी कीर्ति चली जाती है। इस चोरी के प्रभाव से सुमति का नाश हो जाता है ॥३३७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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