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________________ Aara १६४ ] मेह मंदर पुराण मार्ग ही कारण है । कौरव पांडवों पर कलेक के लगने में मूल कारण परिग्रह ही है। भाई बंधु इष्टमित्र प्रादि से क्लेश रखाने वाला यही परिग्रह है। भाई भाई, मां-बाप विरोध तथा प्रापस में शत्रुता भी यह परिग्रह ही कराता है । इसके रहते हुए प्राज तक किसी ने सुख नहीं पाया ।।३२५।। मोगमे निरया निर यायदु। मोगमे मू वुलगिन वलियदु । मोगमे मुनिम किडे पूरदु। मोगमिल्लवर नलमनिवरे ॥३२६॥ अर्थ-यह परिग्रह महान पिशाच के समान है। इसको शांत करने के लिए कोई प्रौषधि नहीं है। तीन लोक की वस्तुएं भी एकत्रित कर ली जांय तो भी शांति नहीं होती। यह सब प्राणियों को दुख दायक है। यह परिग्रह महान तपश्चर्या का नाश करने वाला है। इस कारण महान तपस्वी ही इसको नाश करने को समर्थ हैं। जिस प्रकार अग्नि में लकडी डालने से अग्नि प्रज्वलित होती है उसी प्रकार यह परिग्रह पिशाच के समान है । तपस्थी लोग ही इसका शमन कर सकते हैं, और कोई नहीं ॥३२॥ मेग विल्लोड वींददु पोलवे । भोक, किळयु पोरुळूकेड ॥ सोगमतुयरतुन यागवन् । नेण निद्रव रिन वियबि नार ॥३२७॥ अर्थ-जिस प्रकार विद्यत आकाश में उत्पन्न होकर तत्काल उसी क्षण में नष्ट हो जाती है उसी प्रकार राजभोग संपत्ति, वैभव बंधु, बांधव, हितमित्र, पिता माता, यह सभी जब ऐश्वर्य क्षीण हो जाते हैं फिर कोई भी साथ नहीं देता है। किंतु मोही जीव शरीर संबंधी सभी दाद्य आडंबर को छोडकर मोह ममता से युक्त होकर अन्तमें सभी परिग्रह को तथा मित्र, बंधु, बांधव को छोडकर जाते समय आर्तध्यान रौद्र ध्यान से नीच गति को प्राप्त होता है और महान दुखी होता है । इस प्रकार की चर्चा सभा में बैठने वाले लोग करने लगे। ॥३२७॥ अंगु निद्रव नेगलु मायि। संगै तन्मुरैयेंद्र, तळ वलु ।। मेंगुम वंदिरळाय तिडर का। नुगि नानोडियु नेडिय वायवे ॥३२॥ अर्थ-तदनंतर उस शिवभूति मंत्री ने अपने द्वारा किये हुए कपट तथा मायाचार से प्रत्यन्त दुखी होकर तीव्र पाप को उपार्जन कर लिया, जिसके द्वारा अनेक प्रकार के महान दुख सागर में मग्न हो गया और उनको यह क्षणिक दुख एक वर्ष के दुख के समान प्रतीत होने लगा ॥३२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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