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________________ १२८ ] मेह मंदर पुराण अर्थ-वह सिंहसेन राजा का मंत्री जिस प्रकार एक मदमस्त हाथी रास्ते में जाता है, उसको पकडने के लिए खड्डा खोदकर घास बिछाकर उसमें बनावटी हथनी को खडा कर देते हैं और वह हाथी मस्त होकर उस हथनी के पास जाते ही खड्डे में गिर जाता है, उसी प्रकार वह शिवभूति मंत्री अपने महंकार द्वारा सत्यघोष पद को घोषित करते हुए मायाचार कपट के द्वारा स्वयं ही पापों के खड्ड में गिर जाता है। इसलिए मायाचार तथा कपटाचार अधिक समय तक टिक नहीं सकता । शीघ्र ही प्रकट हो जाता है । जैसे तूम्बी के कीचड का लेप कर उसको पानी में डुबो दिया जावे तो वह पानी में डूबी रहती है, कीचड के हटते ही वह तूम्बी ऊपर मा जाती है, उसी प्रकार सत्यघोष मंत्री की सारी बातें पाप कर्म के उदय से जनता के सामने प्रकट हो गई। यह मायाचार प्राणी को भव २ में दुख देता है। मायाचारी व कपट करना उचित नहीं है । तत्वार्थ सूत्र में उमास्वास्वामी ने कहा है कि: __ "माया तैर्यग्योनस्य"-मायाचार तियंच गति के लिए कारण है, इसलिए मनुष्य गति से सुगति प्राप्त करना चाहते हो तो मिथ्या माया निदान इन तीनों शल्यों को त्याग करना चाहिये । व्रत भी मायाचारी को नहीं होता है। निःशल्योक्ती-शल्य रहित मनुष्य को व्रती कहते हैं। यदि शल्य सहित होगा तो उसका कभी संसार से उद्धार नहीं हो सकता। ॥३१५॥ कोबिया वस्सु नीदि कुरै पडा वगैईनान्मा। पाविया मिवन भूलिन् पडिनार कडिगवेन ॥ नाभिकालत्ति निप्पा नडकिड लिन् । दीविगा मरणत्ति नगिळ शैवदु तेरिदु सोनार ॥३१६॥ मरित्त वाय करित्तु मल्लर मुप्पदु सवट्ट तिडो । केडुत्तिरा बडिरोरुत्तिन शान मुत्तालं तीट्रि॥ पडत्तमा उनत्त, कोंडिट डिप्पदि निड़ म पोग । बडित्तला वंड मेंड्रा ररसनप्पडि शेगेंडान् ॥३१७॥ अर्थ-उस समय सिंहसेन राजा अत्यन्त क्रोधित होकर उस पापी सत्यघोष को उसके द्वारा किये हुए अपराध का राजनीति विधान के अनुसार दण्ड देना चाहिये, ऐसा विचार करके राजनीति में भली प्रकार जानने वाले न्यायाधीश आदि से पूछताछ की कि महाराजा नाभि के समय में जो दण्ड विधान था वह अलहदा था, अब इस समय हुडावसपिणी काल है, और कर्मभूमि में परिवर्तन कर रहा है,अतः इनको कौनसे शासनानुसार दण्ड __ चाहिये, ऐसा राजा ने आमंत्रित न्यायाधीशों से पूछा। तब सभी ने मिलकर यह विधान बनाया कि बडे पहलवानों द्वारा गदा डंडों आदि से शिवभूति को बत्तीस बार घूसा मार लगानी चाहिये या एक टोकरी भर बैल का गोबर खिलाना चाहिये और आज तक जितनी संपत्ति मादि की कमाई की है वह सब छीन ली जाय और इस नगर से उसको निकाल दिया जाय। ऐसा समा में सभी नीतिकारों ने विधान बनाया। तब राजा सिंहसेन ने अपने कर्मचारियों को बुलाकर प्राज्ञा दी कि विधानानुसार शिवभूति, को दंड दिया जावे। तब मन्मथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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