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________________ मेरु मंदर पुराण [ १५७ कोंडव बूदितन पाल कोन सेट्टि पट्टस् तन्म। मंड लम् तोंगल वेदन वनिग नुक्कोंदु सोनान् ॥३१२॥ अर्थ-वह रामदत्ता पटरानी अपने पति राजा सिंहसेन की बातों को सुनकर जिस प्रकार वादी अपना मुकदमा स्वयं के अनुकूल फैसला होने से प्रसन्न होता है, उसी प्रकार भद्रमित्र बरिणक के रत्नों को मंत्री द्वारा चोरी किये हुए को निपुणमति दासो के द्वारा प्राप्त हुए थे इस बात को सुनकर महारानी बडी प्रसन्न हुई और सिंहसेन राजा ने शिवभूति मंत्री द्वारा इस अपराध को करने पर मंत्री पद से च्युत कर दिया और उस भद्रमित्र बरिणक को मंत्री पद दे दिया ॥३१२॥ मरिणगळं पोन्नु मुत्रं पिरक्कं भूमि । मणिगळं पोन्मुं मुमुत्तुं वैरमु मडक्कु माडम् ।। मरिणगळं पोण्णं मुत्तू वैरयुम् वडित सैद । वरिणगळु तुगिलं सेंदु मल्लवम् कैकोळ्ळेडान् ॥३१३॥ अर्थ-स्वर्ण रत्न आदि उत्पन्न होने वाली भूमि को, मोती वज्र आदि से भरा हया भंडार तथा अमूल्य पाभरण वस्त्र आदि सभी भद्रमित्र को दे दिये। तत्पश्चात् अपने कर्मचारी को आज्ञा दी कि शिवभूति ने आज तक अन्य लोगों की कितनी संपत्ति व धन आदि को लूटा है, पता नहीं। फिर भी इसके धन में जितने भी प्राभूषण रत्न आदि हों वे सब लूटकर ले प्रावो और भद्रमित्र मंत्री को दे दो ।।१३।। इडं पेरिदुडय्यवर पळिइल कार्य । तोडंगिय मुडित्तलाल विडार्गळे बदु ॥ मडंगळ पोनिदि वरिणगन् मंदिरि । रडन् जल कडंदिदु मुडिद देंड्नर् ॥३१४॥ अर्थ-मनः पूर्वक सत्पुरुष लोग किसी भी कार्य को करने की प्रतिज्ञा करते हैं तो उस कार्य को किसी भी प्रकार की आपत्ति आने पर भी पूर्ण करके ही छोडते हैं, अधूरा नहीं छोडते हैं । इसी प्रकार सिंह के समान शूरवीर उस भद्रमित्र ने शिवभूति द्वारा अनेक दुख देने पर भी अपनी सत्यता को नहीं छोडा । इसी कारण भद्रमित्र की गई हुई संपदा मिल गई मार मंत्री पद मिल गया । यह सब पूर्वजन्म के पुण्य का तथा इनके सच्चरित्र का फल है। ऐसी चर्चा परस्पर में सभी लोग करते थे ।।३१४।। मत्तमाल कळिरु पोगुं वळिइन कुळित्त मान । पोइत्तर शैवु बोळ तु पिडित्तिडु पुलयन् पोल ॥ सत्तिय कोडनेन्नु जरित्तिनार ट्रन्न तेदि। वैत्तिद वैयत्तोडु वंजित्ता निन्न येन्ना ॥३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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