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________________ १४६ ] मेरु मंदर पुराण धारण करने वाले नाथ ! इस मन्त्री को छूत युद्ध में एक ही क्षण में जीत सकती हूँ-इस प्रकार की बात रानी की सुनकर मन्त्री ने कहा कि राजन् ! मैं इन रानी को शीघ्र जुम्रा में हरा दूंगा-इसमें एक क्षण भी नहीं लगेगा ॥२८२।। मुरै मुरै सबदं शैय अरसनु मुगिळ मुगिळ्तु । पिरै नूदर पेद तन्पा लिरुदनन् ट्रेवि पिन्न । मरय वन माविनूलु नाममोदिर मु मीरा। मुरै मुरै वेंड, कोंडाल मूचिया वैतुयिर्तान् ॥२८३॥ अर्थ-इस प्रकार परस्पर विवाद के पश्चात् मन्त्री कहने लगा कि मैं मेरा सामर्थ्य प्रकट करूंगा। तब राजा भ्रम में पड़कर रानी के बगल में बैठ गया। तदनंतर रानी व मन्त्री के बीच में छूत क्रीडा प्रारम्भ हो गई। जुमा के खेल के प्रारम्भ होते हा रामदत्ता देवी ने अपनी चूत क्रीडा के सामर्थ्य से मन्त्री की वज्रकी बनी हुई यज्ञोपवीत जीतली और दूसरी बाजी में मन्त्री की मुद्रिका को जीत ली। तब मन्त्री इन दोनों के जीत लेने के बाद दीर्घ श्वास लेने लगा ॥२८३।। मईलोडु पोरुदु तोट वाळरिपोल मागि इप् । पुयलन मेनिवे' पोडिप्पव निरुंद पोळदिर । कुइन् मुळि वेंड कोंड काटि सेप्पदन वांगुम् । शयलेलाम सेविलितायकु सेप्पिविरिण दिन मेंडाळ ॥२८४॥ अर्थ-जिस प्रकार मादी मोरनी युद्ध करके मोर को जीत लेती है उसी प्रकार वह मंत्री रामदत्ता देवी के साथ द्यूत क्रीडा में अपयश को प्राप्त हुआ। रानी ने जुम्रा में जीती हुई यज्ञोपवीत व मुद्रिका को लेकर भीतर गई और अपनी निपुणमति नाम की दासी को बुलाकर कहा कि यह यज्ञोपवीत व मुद्रिका को लेकर मंत्री के महलों में जावो और यह दोनों वस्तुए मंत्री के भंडारी को बतलाना और यह कहना कि मंत्रीजी ने यह कहा है कि यह दोनों चीजें तुम अपने भंडार में रखलो और इनकी एवज में जो रत्न तुम्हारे भंडार में रखे हैं वह तुम दे दो ।। २८४ ॥ करुबै मेंडनय तीन सोविलन ट्रेवितायां । नेरुगि निडळुद कोंगै निपुन मा मदियि पोगि ॥ सुरुबिरु तुरंगुम् तोंग लम्च्चन्ट्रन माडन् तुन्नि । विरुबि वंदडैद तंडकारिक्कु बेरु सोन्नाळ ॥२८५।। अर्थ-तत्पश्चात् सभी बातों में चतुर वह निपुणमति दासी उस मुद्रिका व यज्ञोपवीत को लेकर मंत्री के महल में पहुँची और उसके भंडारी को बुलाकर जितनी बातें महारानी ने समझाई थी, उनसे भी अधिक चतुराई से बातें बनाकर भंडारी को विश्वास दिलाकर अत्यंत मार्मिक बातें कहने लगी ॥२८५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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