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मेह मंवर पुराण
[ १४५ कहता है और कोई बात नहीं कहता, ऐसी दशा में वह पागल नहीं है। तब राजा ने सारी बातें सुनकर कहा कि हे देवी ! इस संबंध में तुम ही विचार करो ॥२७६।।
नीदिये पडित्तान् पोल वळं क्किड़ान् वळक्कु निड़। वेदियन् शयल मेल्लाम विळक्कु पोल काट्ट वल्लन् । सूदि यान् बूदि योडु पोरद पिन्नेन्न सोन्नाळ ।
यावनि बैंडिल्ला मिशैंदन नेड, सोन्नान् ॥२८०॥ अर्थ-राजा की बात को सुनकर वह रानी कहने लगी कि शास्त्र को मनन किया हुआ पंडित के समान, अविरुद्ध बात अर्थात् न्याय की बात कहने वाले के समान उस वणिक की बातों को मैंने सुनी है । शिवभूति हमारा मन्त्री है। इन दोनों वणिक की और मन्त्री की बातों को सुनने के लिए मुझको अवकाश मिलना चाहिए। मैं आपकी आज्ञा चाहती हूं क्योंकि यदि अन्धेरे में दीपक जलाकर रखा जाय तो अन्धेरा दूर हो जाता है। प्रतः आप मुझको उस मन्त्री के साथ जुना खेलने की स्वीकृति दें। तब राजा ने कहा कि हे प्रिये! तू यदि इस बात का निर्णय ही करना चाहती हो तो अवश्य इस कार्य को करो ।।२८०।।
परसन दरुळि नाले मंदिरि यवनैकूवि । पेरिदुपो देशदि याडि पिन्न योई तोडंगा।। उरै शैवाळ सूविलेन्नोडप्प वरिलै पेंड्र।
परसुनु मंदिरि यै नोकवगो पेरिवळगि वेडान ॥२१॥ तदनंतर रामदत्ता देवी ने अपने कर्मचारी को भेजकर शिवभूति मन्त्री को राजा के पास बुलाया और रानी ने राजा तथा मन्त्री को नमस्कार किया। तत्पश्चात् रानी ने चतुर होने के कारण दोनों के सामने राजनीति कूटनीति की बातों को तथा कुछ समय हास्य विनोद की चर्चा की और कहने लगी कि हे नाथ ! यह सत्यघोष शिवभूति मन्त्री जुया खेलने में बड़ा चतुर व सामर्थ्यवान है ! इससे कहदो कि यह मेरे साथ जुड़ा खेलकर झसे जीतने का प्रयास करे, परन्तु मेरे से जुमा जीतने की सामर्थ्य इनमें नहीं है । तब राजा ने हंसते हुए मन्त्री की ओर देखा और कहने लना कि रानी ने जो बात कही वह सत्य है । मन्त्री वास्तव में इतना चतुर व सामर्थ्यवान नहीं है । अच्छा मन्त्री के साथ जुड़ा खेलकर तुमको अपनी चतुरता दिखानी चाहिए ॥२८१।।
बरैयन सेरिव माई मंदिरि तन्नवल्ले । उरै योंड़मुडियु मेलै उडेप्प निप्पोरि लेन । तिर सेरि कडलंतान उदयान देवि तन्ने ।
पोरवेंड. पूढम पोळ्धे वेल्वनि पोरि लेडान् ।।२८२॥ पर्थ-वह रामदत्ता महारानी कहने लगी कि हे पर्वत के समान निविड़ हृदय को
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